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________________ जैन साहित्य में नीतिशास्त्र पर हुई ग्रंथरचना नीतिवाक्यामृतम् जैन साहित्य में नीतिशास्त्र पर अनेक ग्रंथों की रचना हुई है। इस में सर्वप्रथम आचार्य श्रीसोमदेवसूरि का कार्य महत्त्वपूर्ण है। जिस प्रकार चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के लिए अर्थशास्त्र की रचना की उसी प्रकार आचार्य श्रीसोमदेवसूरिजी ने राजा महेन्द्र के लिए नीतिवाक्यामृतम् इस ग्रंथ की रचना की। जो गद्यात्मक सूत्रबद्ध शैली में ३२ समुद्देशों मे विभक्त है। १. धर्मसमुद्देश, २. अर्थसमुद्देश, ३. कामसमुद्देश, ४. अरिषड्वर्ग, ५. विद्यावृद्ध, ६. आन्वीक्षिकी, ७. त्रयी, ८. वार्ता, ९. दण्डनीति, १०. मंत्री, ११. पुरोहित, १२. सेनापति, १३. दूत, १४. आचार, १५. विचार, १६. व्यसन, १७. स्वामी, १८. अमात्य, १९. जनपद, २०. दुर्ग, २१. कोष, २२. बल, २३. मित्र, २४. राजरक्षा, २५ दिवसानुष्ठान, २६. सदाचार, २७. व्यवहार, २८. विवाद, २९. षाड्गुण्य, ३०. युद्ध, ३१. विवाह और ३२. प्रकीर्ण। उपर्युक्त विषयसूचि के अनुसार यह ग्रंथ राजा-राज्यशासन-व्यवस्था आदि विषयों में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। अल्पाक्षरी और मनोरम होने के कारण कौटिल्य अर्थशास्त्र से भी ज्यादा सरस लगता है। इस ग्रंथ पर हरिबल नामक विद्वान ने टीका लिखी है। आचार्य श्रीसोमदेवसूरि के यशोधरचरित नाम के ग्रंथ में भी यशोधर राजा का चरित्र चित्रण करते समय राजनीति की विस्तृत चर्चा की है। लघु-अर्हन्नीति प्राकृत साहित्य में बृहदर्हन्नीतिशास्त्र के आधार पर आचार्य श्री हेमचंद्रसूरिजी ने लघु-अर्हन्नीति यह संस्कृत पद्यात्मक छोटा ग्रंथ लिखा। महाराज कुमारपाल के लिए यह ग्रंथ निर्माण हुआ। धर्म के अनुसार राजनीति का उपदेश इस ग्रंथ में किया गया है। कामन्दकीय-नीतिसार उपाध्याय श्री भानुचंद्रजी इनके शिष्य उपाध्याय श्री सिद्धिचन्द्रजी ने कामन्दकीय नीतिसार नाम के ग्रंथ का संकलन किया है। कौटिल्य अर्थशास्त्र के सूत्रों की स्पष्ट व्याख्या करनेवाला यह ग्रंथ है। काल के अनुसार यह ग्रंथ कौटिल्य अर्थशास्त्र के बाद मतलब ६ वे शतक में से है। इसकी रचना श्लोकबद्ध होकर कौटिल्य अर्थशास्त्रमें से पारिभाषिक संकल्पना समझने के लिए इसका उपयोग होता है।
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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