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[मूल]
(अन्वयः)
(अर्थः)
इन्द्रद्वीपकुलोद्भूतं कुम्भिकुम्भोद्भवं च यत्।
अनर्घ्यं गुणवत् मुक्ताफलं हि पृथुलं हितम्॥ ३५५॥ (४.९०)
यद् इन्द्रद्वीपकुलोद्भूतं कुम्भिकुम्भोद्भवं च गुणवत् अनर्घ्यं पृथुलं मुक्ताफलं हि हितम्। इन्द्रद्वीप कुल में उत्पन्न और हाथी के कुंभस्थल में उत्पन्न मोती अमूल्य होता है और गुणयुक्त है बड़ा और हितकारी होता है।
बुद्धिसागरः
[मूल]
शेषतक्षकयोर्वंश्या नागास्तत्फणमध्यजा।
मुक्ता नीलद्युति: स्निग्धा वक्ष्येऽतस्तत्परीक्षणम्॥३५६॥(४.९१)
(अन्वयः) शेषतक्षकयोः वंश्या नागाः तत्फणमध्यजा नीलद्युतिः स्निग्धा मुक्ता अतः तत् परीक्षणं वक्ष्ये। (अर्थः) शेषनाग और तक्षकनाग के वंश में उत्पन्न होने वाले सर्प को नाग कहते हैं। उनकी फना के मध्यभाग में नीलवर्ण का स्निग्ध मोती होता है। अब उसकी परीक्षा करुगाँ।
[मूल]
भाजने सुप्रदेशस्थे राजते मौक्तिकं स्थितम्।
तद्दृष्ट्वा स्याद्यदा वृष्टिरकस्मात् ज्ञेयमौरगम्॥३५७॥ (४.९२)
(अन्वयः) राजते भाजने सुप्रदेशस्थे स्थितं मौक्तिकं तद् दृष्ट्वा यदा अकस्मात् वृष्टिः स्यात् तदा औरगं ज्ञेयम्। (अर्थः) अच्छे प्रदेश में, चाँदी के पात्र में, नाग के मोती को रखा है उसको देखकर अचानक बारिश होती है तो वह मोती नाग का जान लेना चाहिए।
[मूल]
भौजङ्गं मौक्तिकं राज्ञां धृतं शत्रून्निकृन्तति।
यशो विकाशयत्याशु श्रियं मातङ्गशालिनीम् ॥ ३५८।। (४.९३)
(अर्थः)
(अन्वयः) राज्ञां धृतं भौजङ्गं मौक्तिकं शत्रून् निकृन्तति यशः मातङ्गशालिनीं श्रियम् आशु विकाशयति। राजा यदि नाग के मोती को धारण करलेता है तो शत्रु का विनाश होता है यश फैलाता है और हाथीओं के समान संपत्ति को देता है।
शङ्खोद्भवं सुवृत्तं स्याद् भ्राजिष्णु शशिकान्तिमत्।
जातं करकवन्मेघसम्भूतं हि तडित्प्रभम् ॥ ३५९ ॥ (४.९४)
[मूल]
(अन्वयः) शङ्खोद्भवं सुवृत्तं स्यात्, भ्राजिष्णु शशिकान्तिमत्, मेघसम्भूतं करकवत् तडित्प्रभं जातम्। (अर्थः) शंख में उत्पन्न हुआ मोती गोल होता है, चमकीला होता है। चन्द्रमा के समान सफेद होता है। बादल में पैदा हुआ मोती (करक- ओलों) के समान होता है। उसका वर्ण बिजली के समान होता है।
[मूल]
पवित्रं तिमिजं मत्स्याक्षिप्रभं च गुणोत्तरम्।
पितृदेवादिकार्येषु शस्तं सर्वजनप्रियम्॥३६०॥(४.९५)
(अन्वयः) पितृदेवादिकार्येषु पवित्रं तिमिजं मत्स्याक्षिप्रभं गुणोत्तरं सर्वजनप्रियं शस्तम्।