________________
चतुर्थः प्रकीर्णकतरङ्गः
[मूल] बलदैत्याङ्गजातानि रत्नानि च दधीचितः।
भूस्वभावाद्वन्दत्येके वैचित्र्यमुपलेष्विदम्॥३५०॥(४.८५) (अन्वयः) बलदैत्याङ्गजातानि रत्नानि दधीचितः च एके भूस्वभावात् वदन्ति, उपलेषु इदं वैचित्र्यम्। (अर्थः) रत्न बलनामक दैत्य के शरीर से पैदा हुआ है, दधीचि ऋषि के शरीर से पैदा हुआ है। धरती के
स्वभाव के कारण पत्थर के रत्नों में विविधता देखने को मिलती है। [मूल]
सर्वद्रव्यैरभेद्यं यद्वजं स्निग्धं सुरश्मिवत्।
तरत्यप्सु तडिद्वह्निशक्रचापोपमं शुभम्॥३५१॥ (४.८६) (अन्वयः) यद् वज्रं सुरश्मिवत् स्निग्धम्, सर्वद्रव्यैः अभेद्यम्, अप्सु तरति, (स) तडिद्वह्निशक्रचापोपमं शुभम्। (अर्थः) जो वज्र अच्छे रश्मि की तरह स्निग्ध है, सब द्रव्य के द्वारा अभेद्य है, पानी में तैरता है, उससे सुन्दर
किरणे निकलती है, वह बीजलि, अग्नि और इंद्र धनुष की तरह शुभ है। [मूल| वज्रं विलक्षणं सम्पज्जीवितस्वजनक्षयम्।
सुलक्षणं करोतीष्टं विद्युद्विषभयापहम् ॥३५२॥ (४.८७) (अन्वयः) वज्रं विलक्षणं सम्पज्जीवितस्वजनक्षयं (करोति) सुलक्षणम् इष्टं करोति विद्युद्विषभयापहम्। (अर्थः) लक्षणरहित वज्र संपत्ति, जीवित और स्वजन का नाश करता है और लक्षणसहित वज्र इच्छित पूर्ण
करता है। बिजली, जहर और भय का नाश करता है। श्वेतं द्विजानां हितकारि वज्रं रक्तं तथा पीतमिलाधिपानाम्।
शिरीषपुष्पधुतिमद्विशां तच्छितेतरं शूद्रहितं प्रदृष्टम्॥३५३॥(४.८८) (उपजाति:) (अन्वयः) श्वेतं वज्रं द्विजानां हितकारि, रक्तं तथा पीतम् इलाधिपानाम्, शिरिषपुष्पद्युतिमत् विशाम्, तत् शितेतरं
शूद्रहितं प्रदृष्टम्। (अर्थः) सफेद वज्र द्विजों के लिए हितकर है, रक्त वर्ण और पीला क्षत्रियों के लिए हितकर है, शिरीष फुल के कान्ति के समान वैश्यों के लिए हितकर है, और काला वज्र शूद्र को हितकारी है।
अथ मुक्ता। [मूल] द्विपाहिशुक्तिशङ्खाभ्रमीनशूकरवेणुतः।
मुक्ताफलानि जायन्ते साम्प्रतं बहु शुक्तिजम्॥३५४॥(४.८९) (अन्वयः) द्विपाहिशुक्तिशङ्खाभ्रमीनशूकरवेणुतः साम्प्रतं मुक्ताफलानि जायन्ते बहु शुक्तिजम्। (अर्थः) मोती हाथी, साप, शुक्ति, शंख, अभ्र, मीन, सूअर, बाँस(वेणु)से उत्पन्न होते है। वर्तमान में ज्यादातर
शिप में ही पैदा होते है उनसे मुक्ता फल उत्पन्न होते है।
मूल]
१. अयं श्लोकः हस्तप्रतिषु न दृश्यते-को२०००८, को१५९३२, ओ २८७८ २. अयं श्लोकः हस्तप्रतिषु न दृश्यते-को२०००८, को१५९३२, ओ २८७८