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चतुर्थः प्रकीर्णकतरङ्गः
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(अर्थः) मछली से पैदा होनेवाला मोती पवित्र माना जाता है। यह मोती मछली के आँख के समान वर्णवाला
होता है। यह मोती गुणयुक्त और सर्वजन प्रिय है और देवकार्य में प्रशस्त गिना जाता हैं। [मूल] दंष्ट्रामूले वराहाणां जातं सर्वगुणास्पदम्।
वाराहं बहुमूल्यं स्याच्चन्द्रकान्तिसमप्रभम्॥३६१॥(४.९६) (अन्वयः) वराहाणां दंष्ट्रामूले जातं सर्वगुणास्पदं वाराहं बहुमूल्यं चन्द्रकान्तिसमप्रभं स्यात्। (अर्थः) सुअर की दाढ के मूल में पैदा होनेवाला मोती वाराहमोती सर्वगुणों का स्थान है बहुमूल्य है और
चन्द्रमा के समान वर्णवाला है। [मूल] पर्वण्यष्टोत्तरशते महद्वंशस्य जायते।
कर्पूरस्फटिकप्रख्यं चिपिटं वेणुजं हि तत्॥३६२॥(४.९७) (अन्वयः) महवंशस्य पर्वण्यष्टोत्तरशते कर्पूरस्फटिकप्रख्यं चिपिटं वेणुजं हि तत् जायते। (अर्थः) एकसौ आठपर्ववाले बडे बाँस में जो मोती होता है उसे वेणुज कहा जाता है। वह कपूर और
स्फटिक के समान उज्वल और चपटा होता है। [मूल] शङ्खवेणुवराहेभनागाभ्रतिमिसम्भवाः।
गुणाधिकतया तक्षैरवेध्या मौक्तिकाः स्मृताः॥३६३॥ (४.९८) (अन्वयः) शङ्खवेणुवराहेभनागाभ्रतिमिसम्भवाः गुणाधिकतयाः तक्षैः अवेध्या मौक्तिकाः स्मृताः। (अर्थः) शंख मोती से वेणु मोती अधिक गुणवान होता है, वेणुमोती से वाराह मोती अधिक गुणवान है,
वाराह मोती से हाथी मोती अधिक गुणवान है, हाथी के मोती से नाग मोती अधिक गुणवान है, नाग मोती से बादलमोती अधिक गुणवान है और बादल के मोती से मछली का मोती अधिक
गुणवान होता है ऐसा उसके जानकार व्यक्ति कहते है। मोती को भेदा नहीं जाता। [मूल] श्यामं वैष्णवमिन्द्रदैवतमिदं चन्द्रप्रभाभासुरम्,
पीतं वारुणमञ्जनेन सदृशं याम्यं च मुक्ताफलम्। गुञ्जादाडिमबीजताम्रमिति यत् प्रोक्तं मरुदैवतम्,
नि मानलसन्निभं तु चतुरैराग्नेयमित्युच्यते॥३६४॥ (४.९९) (अन्वयः) इदं श्यामं वैष्णवम्, इन्द्रदैवतं चन्द्रप्रभाभासुरम्, पीतं वारुणम्, अञ्जनेन सदृशं याम्यं च,
गुञ्जादाडिमबीजतानं मरुदैवतम् इति मुक्ताफलं प्रोक्तम्, निर्दू धू)मानलसन्निभं तु चतुरैः आग्नेयम्
इति उच्यते। (अर्थः) काले मोती के देवता विष्णु है, सफेद मोती के देवता इन्द्र है, पीत मोती के देवता वरुण है, अंजन के
समान वर्णवाले मोती के देवता यम है, गूंजा का फल और अनार के बीज के समान लालमोती के देवता मरुत् है और निधूम अग्नि के समान वर्णवाले मोती के देवता अग्नि है।
१. अयं श्लोकः हस्तप्रतिषु न दृश्यते-को२०००८, को१५९३२, ओ २८७८