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________________ २८२ अर्धमागधी व्याकरण समे पणिहा (अ) वर्णान्तरित :उवलभ उवलब्भ पक्खिव पक्खिप्प अभिरुह अभिरुज्झ पाव पप्प (प्राप्य) समेच्चसामिच्च पविस पविस्स अभिगम अभिगम्म समादा समादाय आदा आदाय उट्ठा उट्ठाय आगम आगम्म (अणुचिंत) अणुवीइ पणिहाय आरभ आरब्भ निक्खम निक्खम्म समारभ समारब्भ परिच्चय परिच्चज्ज परिगिण्ह परिगिज्झ आहर आहच्च निसम निसम्म परिन्ना (प्रतिज्ञा) परिन्नाय परिट्ठव परिट्ठप्प अइक्कम अइक्कम्म पगिज्झ अणुभव अणुभूय पडिसंधा पडिसंधाय विणिकरिस विणिक्कस्स (विनिकृष्य)अभिकंख अभिकंख प्रतीत्य (आ) इतर काही : दतॄण, दतॄणं, दिस्स, दिस्सा, दिस्सं (पास); पस्स (पास); सोऊण, सोऊणं (सुण); लभ्रूण (लभ); थोऊण (थुण), संथोऊण (संथुण) २७७ हेत्वर्थक अण्यय तुमन्त : पुढे सांगितल्याप्रमाणे विविध प्रत्यय लावून हेत्वर्थक अव्यये वा तुमन्ते सिद्ध केली जातात. (१) (अ) अकारान्त धातूंना ‘इउं' हा प्रत्यय जोडून :भास-भासिउं, उज्झ-उज्झिउं, परिहर-परिहरिउं, मर-मरिउं, जिण-जिणिउं, भिंदभिंदिउं, पास-पासिउं, दह-दहिउं पगिण्ह पडुच्च १ २ पा.स.म. पृ.४५ पएसि, टीपा, पृ.९२
SR No.007784
Book TitleArdhamagdhi Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK V Apte
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages513
LanguageMarathi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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