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________________ www.vitragvani.com 84] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 है। इसलिए आगम की शैली में प्रत्यक्ष-परोक्ष के जो भेद आवें, उनमें इसका कथन नहीं आयेगा। समयसार में कहते हैं कि मैं मेरे समस्त निजवैभव से शुद्धात्मा दिखाता हूँ, उसे स्वानुभव-प्रत्यक्ष से प्रमाण करना-तो वहाँ श्रोता तो मति-श्रुतज्ञानवाले ही हैं और उन्हें ही मति-श्रुतज्ञान द्वारा स्वानुभव-प्रत्यक्ष करने को कहा है। यदि स्वानुभव में मति-श्रुत प्रत्यक्ष न होते तो ऐसा कैसे कहते ? यहाँ कहते हैं कि जिज्ञासु को ऐसा स्वानुभव करने से पहले आगम द्वारा तथा अनुमान इत्यादि द्वारा आत्मा का यथार्थस्वरूप निश्चित किया है, पश्चात् उसमें परिणाम लीन करके स्वानुभव करता है। आगम में, अरिहन्त के आत्मा का उदाहरण देकर आत्मा का शुद्धस्वभाव दिखलाया है। अरिहन्त का आत्मा, द्रव्य से-गुण से और पर्याय से जैसा चेतनामय शुद्ध है, वैसा ही आत्मा का स्वभाव है, अरिहन्त जैसा ही चेतनस्वभावी यह आत्मा है। अरिहन्त के आत्मा में शुभराग इत्यादि विकार नहीं, वैसे शुभराग इस आत्मा का भी स्वभाव नहीं। आगम में शुभराग को आत्मा का स्वभाव नहीं कहा, परन्तु परभाव कहा है, उसे अनात्मा और आस्रव कहा है। ऐसे अनेक प्रकार से आगम के ज्ञान से आत्मस्वरूप का निर्णय करना चाहिए। तथा, अनुमान के विचार से भी वस्तुस्वरूप निश्चित करे। जैसे कि मैं आत्मा हूँ... मुझमें ज्ञान है। जहाँ-जहाँ ज्ञान है, वहाँ-वहाँ आत्मा है; और जहाँ-जहाँ आत्मा है, वहाँ-वहाँ ज्ञान भी है। जैसे कि सिद्धभगवान। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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