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________________ www.vitragvani.com 188] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 ज्ञानस्वाद को बारम्बार घूटते, रागभाव का सब रस छूट जाये जब.. ज्ञानमग्न होते जो शान्ति जागती विकल्प वहाँ सभी भग जायें जब.. अद्भुत अद्भुत अद्भुत वैभव ज्ञान में अनन्त खोला स्वानुभूति का द्वार जब, चेतन जाति सच्ची आतम जाति है केवली में अरु मुझमें नहीं कुछ भेद जब। अद्भुत कैसा चैतन्यरस इस आत्म का सर्व क्लेश इससे अति ही दूर जब भवभ्रमण छूटा और डंका बज गया मोक्षपुरी का सुख दिखे नजदीक जब... उथल-पुथल आत्म-असंख्य प्रदेश में मानों आनन्द का महा धरती कम्प जब.. चैतन्य पाताल गहरे से उल्लसित हो रहा, मोह पर्वत का हुआ चकचूर जब / चेतनवन्त जीव साधक देखकर, जगी जगी चेतनादेवी अपूर्व जब.. चेतना ने तो छोड़ा बाहिरभाव को लिया लिया एक ही शान्तरस पिण्ड जब... (स्वानुभूति प्रकाश काव्य के 47 पदों में से) Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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