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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-6] [155 महिमा जानकर लक्ष्य में लेता है, और फिर बार-बार उसके अभ्यास से परिणाम को उसमें लगाकर, अन्तर्मुख उपयोग के द्वारा उसके अनुभवसहित उसका सत्य दर्शन करता है-यही सम्यग्दर्शन है। यह सम्यग्दर्शन मोक्षनगरी में जाने के लिये शीघ्रगामी वाहन है, कर्मरज के गंज को ऊड़ा देनेवाला महा पवन है, और भव के वन को भस्म करने के लिये अग्नि समान है; मुमुक्षु का यह एक मनोरथ है। अहा, सर्वज्ञ तीर्थङ्करों ने जिसकी महिमा दिव्यध्वनि के द्वारा प्रसिद्ध की है, वह भगवान आत्मा शुद्ध चिद्रूप, सर्व तीर्थों में उत्तम तीर्थ, सुख का महान खजाना और सबसे सुन्दर तत्त्व है। - ऐसे अचिन्त्य अद्भुत आत्मतत्त्व का ज्ञान होते ही परिणाम शीघ्र स्वोन्मुख हो जाता है-क्षणभेद भी नहीं रहता। जहाँ ज्ञान स्वोन्मुख हुआ, वहाँ श्रद्धा इत्यादि अनन्त गुण भी अपने अपने निर्मलभावरूप से खिल उठे। वाह ! आत्मबाग खिल उठा... और अनन्त गुणों के शान्तरस का एक साथ कोई अतीन्द्रिय निर्विकल्प अत्यन्त मधुर स्वाद अनुभूति में आया... उसका नाम है सम्यग्दर्शन ! इस प्रकार जब पूर्णस्वरूप के लक्ष्य से सम्यग्दर्शन हुआ, तब मोक्षमार्ग का प्रारम्भ हुआ; पूर्णता के लक्ष्य से जो प्रारम्भ हुआ, वही वास्तविक प्रारम्भ है। मोक्षमहल का प्रथम सोपान यह सम्यग्दर्शन है। अहा! जिसकी सन्धि परमात्मपद के साथ है-ऐसी ज्ञानदशा तथा ऐसा सम्यग्दर्शन प्रगट होने के पूर्व मुमुक्षु को आत्मा की ओर Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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