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परमात्मने नमः
मानव जीवन का महान कर्त्तव्य
सम्यग्दर्शन
(भाग-6)
श्री वीरनाथ को वन्दना जो जानता महावीर को चेतनमयी शुद्धभाव से; वह जानता निज आत्म को समकित लहे आनन्द से॥
अहो, सर्वज्ञ महावीरदेव! शुद्ध चेतनारूप हुए आप, सर्व प्रकार से शुद्ध हो; रागादि का कोई अंश आपमें नहीं है। आपके ऐसे स्वरूप को पहिचानने से, चैतन्य और राग की अत्यन्त भिन्नता जानकर आत्मा के सत्य स्वरूप का भान हुआ, आनन्दमय सम्यक्त्व हुआ, यह आपका परम उपकार है। भव्य जीवों को सम्यक्त्व प्रदान करनेवाला आपका शासन जयवन्त है। सम्यग्दृष्टि जीवों से आप वन्दनीय हैं। मोक्ष के हेतुभूत ऐसे हे महावीर भगवान! आपको हमारी वन्दना है।
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