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________________ www.vitragvani.com 130] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 इस तरह धर्म के सब मर्म को जानकर शासन की शोभा बढ़े और अपना हित हो - ऐसा वर्तन करते हैं। श्रावक धर्म क्या? मुनि का धर्म क्या? धर्म में, तीर्थों में, शास्त्रादि में तथा साधर्मी में दानादि की कब और कैसी आवश्यकता हैं, उस सम्बन्धी श्रावक को जानकारी होती है। 19. दीनतारहित तथा अभिमानरहित ऐसा मध्यस्थ व्यवहारी : धर्म का गौरव अच्छी तरह बना रहे तथा अपने को अभिमानादि न हो, इस प्रकार मध्यस्थ व्यवहार से प्रवर्ते । व्यवहार में जहाँ-तहाँ दीन न हो जाये; रोगादि प्रसङ्ग में या दरिद्रादि में घबड़ा कर ऐसी दीनता नहीं करते कि जिससे धर्म की निन्दा हो। अरे, मैं तो पञ्च परमेष्ठी का भक्त; मुझे दुनिया में दीनता कैसी? उसी प्रकार देव-गुरु-धर्म के प्रसङ्ग में, साधर्मी के प्रसङ्ग में अभिमान रहित नम्रता से प्रेम से वर्ते। साधर्मी की सेवा में तथा अपने से छोटे साधर्मी के साथ हिलमिलकर रहने में अपनी हीनता नहीं मानते। सन्तों के चरणों में चाहे जैसा दीन होकर भी यदि आत्महित होता हो तो वे उसके लिये तैयार है; उसमें अभिमान नहीं रखते और जिसमें आत्मा का हित न होता हो, ऐसे प्रसङ्ग में वे दीन नहीं होते; असत् के प्रति जरा भी नहीं झुकते, वहाँ अपने धर्म का स्वाभिमान रखते हैं। इस प्रकार न दीन न अभिमानी-ऐसे मध्यस्थ व्यवहारी श्रावक होते हैं। 20. सहज विनयवान : जहाँ विनय का प्रसङ्ग हो, वहाँ उनको सहज विनय आता है। देव-गुरु के प्रसङ्ग में, साधर्मी के प्रसङ्ग में, या बड़ों के प्रसङ्ग में योग्य विनय से वर्तन करते हैं। सम्यक्त्वादि गुणीजनों को देखते ही प्रसन्नता से विनय-बहुमान Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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