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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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उत्तर : वह विकल्प, विकल्प में है; स्वानुभव का जो भाव है, उसमें विकल्प नहीं। विकल्प और स्वानुभव दोनों चीज़ ही पृथक् है। स्वानुभव के काल में अबुद्धिपूर्वक विकल्प है, वह है अवश्य परन्तु स्वानुभव के भाव में विकल्प का भाव नहीं है। जैसे जगत् में अन्यत्र कहीं अन्धकार हो, वह कहीं सूर्य में नहीं है। सूर्य से तो अन्धकार भिन्न ही है, सूर्य में अन्धकार नहीं है; उसी प्रकार स्वानुभव में विकल्प नहीं है।
यहाँ प्रश्नकार कहता है कि स्वानुभव होने पर कोई विकल्प रहता है? या जिसका नाम विकल्प है, वे सब मिट जाते हैं? अबुद्धिपूर्वक के विकल्प तो अनुभव में है या नहीं? या वे भी छूट गये हैं ?
उसका उत्तर इस प्रकार है कि समस्त ही विकल्प मिट जाते हैं, स्वानुभव में एक भी विकल्प नहीं रहता। __ भिन्न विकल्प अबुद्धिपूर्वक है, उसका भी अनुभव के काल में लक्ष्य नहीं है; उपयोग अतीन्द्रिय आनन्द के वेदन में ही लगा हुआ है, उस वेदन में किसी विकल्प का प्रवेश नहीं है। आनन्द के वेदन में विकल्प को देखता ही कौन है ? इसलिए कहा कि स्वानुभव के काल में समस्त विकल्प कहाँ गुम हो गये है, वह भी हम नहीं जानते । स्वानुभव प्रगट होने पर जहाँ प्रमाण-नय-निक्षेप के भेद भी अभूतार्थ हो जाते हैं, वहाँ दूसरे रागादि विकल्प की तो क्या बात? प्रमाण-नय-निक्षेप से जो वस्तुस्वरूप निर्णय किया था, वह कोई अलग नहीं है, परन्तु अनुभव के पहले प्रमाण इत्यादि के जो विकल्प थे, वे अब साक्षात् अनुभव के काल में छूट गये, इस
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