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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-6] [103 सम्यग्दर्शन के पास के राग को भी मोक्ष का कारण मान ले तो उसने बन्ध के कारण को मोक्ष का कारण मान लिया। ऐसे जीव को शुद्ध आत्मा का ध्यान या रागरहित की निर्विकल्पदशा नहीं होती, अर्थात् उसे मोक्षमार्ग नहीं होता; वह मोक्षमार्ग के नाम से भ्रम से बन्धमार्ग का ही सेवन कर रहा है। ___ अथवा, जीव के परिणाम तीन प्रकार के हैं : शुद्ध, शुभ और अशुभ। उनमें मिथ्यादृष्टि को अशुभ की मुख्यता गिनी है, क्वचित् शुभ भी उसे होता है। उसे शुद्धपरिणति नहीं होती है। शुद्धपरिणाम की शुरुआत सम्यग्दर्शनपूर्वक ही होती है। चतुर्थादि गुणस्थान में शुभ की मुख्यता कही है, और साथ में आंशिक शुद्धपरिणति तो सदा ही वर्तती है। यद्यपि शुद्ध उपयोग कभी-कभी होता है परन्तु शुद्धपरिणति तो सदैव वर्तती है और सातवें गुणस्थान से लेकर ऊपर के सभी स्थानों में अकेला शुद्धोपयोग ही होता है। परिणति में जितनी शुद्धता है, उतना ही धर्म है, उतना ही मोक्षमार्ग है। जीव जब अन्तर्मुख होकर अपूर्व धर्म की शुरुआत करता है-साधकभाव की शुरुआत करता है, तब उसे निर्विकल्प शुद्धोपयोग होता है। उस निर्विकल्प स्वानुभव द्वारा ही मोक्षमार्ग का द्वार खुलता है। अहो! यह तो वास्तविक प्रयोजनभूत, स्वानुभव की उत्तम बात है। स्वानुभव की ऐसी सरस वार्ता भी महाभाग्य से ही सुनने को मिलती है... और उस अनुभवदशा की तो क्या बात ! चिदानन्दघन के अनुभव से सहजानन्द की वृद्धि हो। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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