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[सम्यग्दर्शन : भाग-6
संसार समुद्र से तिर नहीं सकता; मोक्ष के लिये उसकी एक भी कला काल में नहीं आती और स्वानुभव की एक कला को जाननेवाला, अन्य कलायें कदाचित् न भी जानता हो तो भी अनुभव के बल से वह संसार को तिर जायेगा और मोक्ष को साधेगा। स्वानुभव के बल से उसे केवलज्ञान की ऐसी महाविद्या खिलेगी कि उसमें जगत की सभी विद्याओं का ज्ञान समा जायेगा। ___ अरे ! आयु थोड़ी, बुद्धि अल्प और श्रुत का तो पार नहीं; इसमें हे जीव! तुझे वही सीखना योग्य है कि जिससे भव-समुद्र तिर जाये। दूसरी निष्प्रयोजन बातों को छोड़कर मूल प्रयोजनभूत इस बात को जान, कि जिसके जानने से आत्मा इस संसार-समुद्र को तिर जाये।
इसके सम्बन्ध में दृष्टान्त देते हैं:
कोई विद्वान नौका में बैठकर जा रहे थे; बीच में नाविक से बातचीत करते हुए उन्होंने पूछा
‘क्यों भाई नाविक! तुम्हें सङ्गीत आता है?' नाविक ने कहा – 'नहीं, भाई!'
थोड़ी देर बाद फिर पूछा- 'संस्कृत-व्याकरण आती है ? ज्योतिष आती है ? गणित आती है ?' नाविक ने कहा – 'नहीं जी, ये कुछ नहीं आते।'
अन्त में शास्त्रीजी ने पूछा-'भैया! कम से कम लिखनापढ़ना तो आता ही होगा?'
नाविक ने कहा-'नहीं जी ! हमारे तो बस यह नदी भली और
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