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________________ www.vitragvani.com 86] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 भी है। शुद्धनय का आश्रय करके शुद्धात्मा का अनुभव करने से, पर्याय में से अशुद्धता टलकर शुद्धता प्रगट होती है। इस प्रकार अनुमान और नय-प्रमाण इत्यादि के विचार तत्त्व -निर्णय के काल में होते हैं परन्तु अकेले इन विचारों से ही कहीं स्वानुभव नहीं होता; वस्तुस्वरूप निश्चित करके, फिर जब स्वद्रव्य में परिणाम को एकाग्र करे, तभी स्वानुभव होता है और उस स्वानुभव के काल में नय-प्रमाण इत्यादि के विचार नहीं होते। नय-प्रमाण इत्यादि के विचार तो परोक्षज्ञान है और स्वानुभव तो कथञ्चित् प्रत्यक्ष है। आगम, अनुमान इत्यादि परोक्षज्ञान से जो स्वरूप, विचार में लिया, उसमें परिणाम एकाग्र होने पर वह स्वानुभव -प्रत्यक्ष होता है। ज्ञानी ने इस स्वानुभव में पहले की अपेक्षा कोई दूसरा स्वरूप जाना-ऐसा नहीं है, अर्थात् ज्ञानी को स्वानुभव में जानपने की अपेक्षा से विशेषता नहीं, परन्तु परिणाम की मग्नता है-वह विशेषता है। ___ आत्मा के अनुभव का स्मरण करके, फिर उसमें परिणाम लगाता है। परन्तु ऐसा स्मरण किसे होता है ? कि पहले एक बार जिसने अनुभव द्वारा स्वरूप जाना हो, उसकी धारणा टिका रखी हो, वह फिर से उसका स्मरण करे। 'पहले आत्मा का अनुभव हुआ, तब ऐसा आनन्द था... ऐसी शान्ति थी, ऐसा ज्ञान था... ऐसा वैराग्यभाव था... ऐसी एकाग्रता थी... ऐसा प्रयत्न था'... ऐसे उसके स्मरण द्वारा चित्त को एकाग्र करके, धर्मी जीव फिर से उसमें अपने परिणाम को जोड़ता है। स्वानुभव के समय कोई ऐसे स्मरण इत्यादि के विचार नहीं होते, परन्तु पहले ऐसे विचारों द्वारा चित्त को एकाग्र करता है; इसलिए ऐसे प्रकार के स्मृति-अनुमान Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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