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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [81 अनुभवरस-घोलन (चैतन्यरसभरपूर तत्त्वचर्चा) से प्रश्न : आप अनुभव की बात करते हो, वह हमें बहुत ही रुचती है परन्तु ऐसा अनुभव कैसे करना? उत्तर : विकल्प से ज्ञान को भिन्न पहचानने का अभ्यास करना; ज्ञान की महानता है, ज्ञान अनन्त चैतन्यभावों से भरपूर है और राग / विकल्प तो चैतन्य से शून्य है-ऐसे भेदज्ञान करने से अनुभव होता है। प्रश्न : छठवें गुणस्थान में महाव्रत के विकल्प हैं, वे कैसे हैं ? उत्तर : छठवें गुणस्थान के शुभविकल्प को भी प्रमाद कहा है तो वह शुभविकल्प, ज्ञान की जाति कैसे होगा? अग्नि का कण भले छोटा हो परन्तु वह कहीं बर्फ की जाति तो नहीं कहलायेगी न? इसी प्रकार कषाय अंश भले शुभ हो परन्तु वह कहीं अकषाय / शान्ति की जाति तो नहीं कहलायेगी न? विकल्प और ज्ञान की जाति ही अलग है। ऐसा भिन्नपना निर्णय करना, वह ज्ञानस्वभाव के अनुभव का कारण है। प्रश्न : राग स्वयं दुःख है या उसमें एकत्वबुद्धि, वह दुःख है ? उत्तर : राग स्वयं दुःख है; इसलिए उसमें एकत्वबुद्धि, वह दु:ख ही है। दु:ख के भाव में जिसे एकत्व भासित होता है (अर्थात् उसमें अपनत्व भासित होता है), वह दुःख से कैसे छूटे? -और उसके सामने राग से भिन्न आनन्दस्वभावी आत्मा स्वयं सुखरूप है; इसलिए उसमें एकत्वपरिणति भी सुख है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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