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________________ www.vitragvani.com 80] [सम्यग्दर्शन : भाग-5 करना सो जीना | * आप सम्यग्दर्शन करने का कहते हो, परन्तु करना, सो तो मरना है? अरे भाई! ज्ञानादि का करना, उसे मरना किसने कहा? ज्ञानादि निजभाव करना, वह तो जीव का सच्चा जीवन है और वही जीव का कार्य है। करना, सो मरना - यह बात तो रागादि विकार के लिये है; वह कहीं ज्ञान के लिये नहीं। भेदज्ञान करना और सम्यक्त्वादि परिणमन करना-वह कहीं मरना नहीं; वह तो सच्चा जीवन है। विकल्प बिना अपनी निर्मलपर्याय को सदा किया करे-ऐसा कर्तृत्व तो आत्मा का स्वभाव है। राग का करना, सो मरना है; ज्ञान करना, सो जीना है। भेदज्ञान और वीतरागता करना, वह ज्ञानी का सच्चा जीवन है। * अगाध शान्ति से भरपूर ज्ञानी का मार्ग में भेदज्ञान के साथ चैतन्य शान्ति की कोई अगाध अनुभूति होती है। अहा! आत्मा शान्ति के बर्फ के बीच बैठा, वहाँ चैतन्य की अनुभूति के आनन्द की क्या बात ! हे ज्ञानी! तेरी बात दुनिया को न अँचे तो तू निरुत्साहित मत होना। दुनिया को भले न अँचे, पंच परमेष्ठी भगवन्त तो तेरे साथ है। अहो! अन्तर का अतीन्द्रियमार्ग! उसे दुनिया के साथ मेल कहाँ से खाये? दुनिया तो बाह्य इन्द्रियज्ञान से देखनेवाली है, उसे अन्तर की वस्तु कहाँ से दिखे? अन्तर्मुख हुए ज्ञानियों के मार्ग के साथ मेरे मार्ग का मेल है... उस मार्ग को अतीन्द्रियज्ञानवन्त ज्ञानी ही देखते हैं । आत्मा की अगाध शान्ति से भरपूर इस मार्ग में पंच परमेष्ठी भगवन्त मेरे साथीदार हैं। पंच परमेष्ठी के प्रसाद से ऐसा मार्ग जगत में जयवन्त वर्तता है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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