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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [79 समयसार में दिखलाया है। अहा! चैतन्य भगवान, जिसमें पूर्णानन्दरूप से अनुभव में आया, उस सम्यग्दर्शन की क्या बात ! लोगों को सम्यग्दर्शन क्या चीज़ है, इसका पता नहीं है। धर्मी को जहाँ आनन्दस्वरूप आत्मा के अनुभवसहित अन्तर में सम्यग्दर्शन हुआ, वहाँ आत्मा में भगवान की प्रतिष्ठा हुई; आत्मा अपने आनन्द का स्वाद लेकर ज्ञानरूप हुआ। वहाँ अब राग नहीं रह सकता, उसकी दृष्टि में तो आनन्दमय आत्मा ही बिराजमान है । समयसार परमात्मा की उसने अपने में प्रतिष्ठा की है। साधक के अन्तर में समयसार बिराजमान है। अहो, समयसार तो समयसार है ! इस संसार में दूसरा सब असार है। अहो ! समयसार भगवान ! तेरी बलिहारी है। ऐसे आत्मा के अद्भुत वैभव की बात विदेह में सीमन्धर परमात्मा के पास जाकर कुन्दकुन्दाचार्यदेव लाये और भरतक्षेत्र के भव्य जीवों को इस समयसार द्वारा प्रदान कर निहाल किया। समयसार में केवली और श्रुतकेवली भगवन्तों की वाणी है, इसकी एक-एक गाथा में ज्ञान का महासमुद्र भरा है, आनन्दमय परमतत्त्व को वह प्रसिद्ध करता है। स्वानुभूति द्वारा ऐसे ज्ञानानन्दस्वरूप आत्मा का अनुभव करनेवाला जीव स्वयं समयसार है। जय समयसार......... जय कुन्दकुन्ददेव!! • गुरु वचन से निज आत्मपद को, देखते मुझ आत्म में, अहा! सीमन्धरनाथ का, साक्षात्कार इस भरत में। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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