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________________ www.vitragvani.com 78] [सम्यग्दर्शन : भाग-5 | साधक के अन्तर में समयसार उत्कीर्ण है। [सोनगढ़ में वीर संवत् २४९९ के माघसर कृष्ण अष्टमी को श्री कुन्दकुन्द प्रभु के आचार्यपद प्रतिष्ठापना का मंगल दिन आनन्द से मनाया गया और उस दिन पूज्य गुरुदेव के सुहस्त से इटली की मशीन द्वारा समयसार परमागम संगमरमर पर उत्कीर्ण करना प्रारम्भ हुआ, उस प्रसंग के भावभीने प्रवचन में गुरुदेव ने कहा कि-] ____ आज कुन्दकुन्द आचार्यदेव का आचार्यपदवी का महान दिन है। वे आत्मा के आनन्द में झुलते महान सन्त थे। दो हजार वर्ष पहले वे इस भरतभूमि में मद्रास के समीप पौन्नूर पर्वत पर बिराजमान थे। वे विदेहक्षेत्र में सीमन्धर परमात्मा के पास गये थे और आठ दिन रहकर भगवान की वाणी सुनी थी; उन्होंने इन समयसार आदि महान परमागमों द्वारा शुद्धात्मा दिखलाकर भव्य जीवों पर महान उपकार किया है। साधक-सन्तों को आत्मा की अनुभवदशा में झूलते-झूलते शास्त्र रचना का विकल्प आया और इन समयसारादि शास्त्रों की रचना हो गयी; उसमें विकल्प का या शब्दों का कर्तृत्व उनके ज्ञान में नहीं। ज्ञान में विकल्प से भिन्न ज्ञान का घोलन चल रहा है, यही मुख्य है। __ सम्यग्दृष्टि अपनी ज्ञानचेतनारूप परिणमता है। उसमें चैतन्य के अतीन्द्रिय आनन्द-स्वाद का वेदन होता है; और उस वेदन द्वारा 'मेरा सम्पूर्ण आत्मा ऐसा आनन्दमूर्ति-चैतन्यमूर्ति है'-ऐसा धर्मी को भान होता है । इस प्रकार स्वभाव में एकत्व और राग से भिन्नता के अनुभवसहित आत्मा की जो प्रतीति हुई, वह सम्यग्दर्शन है। उसका अचिन्त्यस्वरूप आचार्यदेव ने आत्मा के वैभव से इस Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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