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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [77 समझकर, हे जीव! आनन्दमय चैतन्यतत्त्व को तू आज ही अनुभव में ले। दूसरा सब भूल जा... निर्विकल्प होकर आत्मा को अनुभव करने का यह उत्तम काल है। इसलिए आज ही अनुभव कर... और सिद्धों की मण्डली में आ। ___ अहो! बड़ों का आमन्त्रण भी बड़ा है। सिद्ध परमेश्वर के मार्ग में जाने की यह बात है। अहा! सिद्धों के लक्ष्य से ऐसे समयसार का श्रवण, वह जीवन का सुनहरा प्रसंग है। हे भव्यश्रोता! इस समयसार द्वारा चैतन्य तत्त्व की अचिन्त्य महिमा सुनकर, ज्ञान को अन्दर एकाग्र करके शुद्धात्मा का घोलन करते-करते तेरी परिणति शुद्ध होगी। सुनते समय उपयोग का जोर श्रवण के विकल्प पर नहीं परन्तु अन्दर शुद्धात्मा पर जोर है-ऐसे शुद्धात्मा की ओर के जोर से जो उठा, उसका मोह टूट जायेगा और सम्यग्दर्शनादि अपूर्व साधकदशा खिल जायेगी। ऐसे कोलकरारपूर्वक इस समयसार की रचना है। इसका भाव श्रवण करते हुए आत्मा में आराधकभाव की झनझनाहट बोलती है... और आनन्द का वेदन करते-करते वह साधक जीव, सिद्धपद लेने चला जाता है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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