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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [63 एक हाथी अद्भुत पराक्रम - भगवान पार्श्वनाथ के जीव को सम्यक्त्व-प्राप्ति का आनन्दकारी वर्णन अपने तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान पूर्व में मरुभूति थे। मरुभूति और कमठ ये दोनों भाई थे। कमठ ने क्रोध से मरुभूति को मार डाला; मरुभूति मरकर हाथी हुआ है और कमठ का जीव सर्प हुआ है। उसके राजा अरविन्द, वैराग्य से मुनि हुए हैं... मुनिराज अनेक तीर्थों की यात्रा करते-करते देश-देश में विचरण करते हैं और भव्य जीवों को प्रतिबोध प्रदान करते हैं। ___ सम्मेदशिखर... यह अपने जैनधर्म का महान तीर्थ है, अनन्त जीव यहाँ से सिद्धपद को प्राप्त हुए हैं, इसकी यात्रा करने से सिद्धपद का स्मरण होता है। अनेक मुनि यहाँ आत्मा का ध्यान करते हैं। ऐसे सम्मेदशिखर महान तीर्थ की यात्रा करने के लिये एक बड़ा संघ चला जा रहा है। श्री अरविन्द मुनिराज भी इस संघ के साथ ही है। चलते-चलते संघ ने एक वन में पड़ाव डाला। शान्त वन हजारों मनुष्यों के कोलाहल से गूंज उठा... मानों जंगल में नगरी बस गयी। अरविन्द मुनिराज एक वृक्ष के नीचे आत्मा के ध्यान में विराजमान हैं। इतने में अचानक एक घटना बनी... क्या बना? वह सुनो__ एक बड़ा हाथी पागल होकर चारों ओर दौड़ा-दौड़ करने लगा और लोग इधर-उधर भागने लगे। कौन है यह हाथी? थोड़े-से भवों के बाद तो यह हाथी, पार्श्वनाथ भगवान होनेवाला है। जो पूर्वभव में मरुभूति था और मरकर हाथी हुआ है, वही हाथी यह है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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