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________________ www.vitragvani.com 50] [सम्यग्दर्शन : भाग-5 आत्मा की कीमत कम मत आँक (कम कीमत करनेवाला आत्मा को ठगता है) *एक बालक के पास रत्नों का अमूल्य हार था। एक व्यक्ति ने उससे कहा : सात निंबोली में यह हार देगा? दूसरे ने उससे कहा कि पेड़ा के बदले में हार देना है ? *तीसरे ने कहा कि हजार रुपया लेकर यह हार देना है ? इस प्रकार वे सब व्यक्ति कम कीमत में हार लेकर उस लड़के को ठगना चाहते थे परन्तु किसी हितैषी प्रामाणिक व्यक्ति ने उसे समझाया कि भाई ! यह हार तू किसी कीमत पर मत बेचना; इसकी कीमत तो बहुत है; अरबों रुपयों से भी इसकी कीमत पूरी नहीं हो सकती। इसकी कीमत तो जगत के उत्कृष्ट से उत्कृष्ट तीन सच्चे रत्नों द्वारा ही हो सकती है। इसी प्रकार प्रत्येक जीव के पास अनन्त चैतन्यगुणरत्नों से शोभित अमूल्य आत्मस्वभाव है। *कोई कुगुरु उसे कहता है कि तुझे देह की क्रिया में आत्मा देना है? __*दूसरा कोई कहता है कि तुझे पुण्य में और स्वर्ग के वैभव में आत्मा देना है? तीसरा कहता है कि शुभराग में तुझे आत्मा बेचना है ? इस प्रकार वे सब अज्ञानी मनुष्य, जीव के स्वभाव की कम कीमत आँककर उसे ठगना चाहते हैं परन्तु जीव के परम हितैषी Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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