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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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ज्ञानचेतना द्वारा मोक्ष को साध रहे हैं, वे महापूजनीय, वन्दनीय हैं। पंच परमेष्ठी भगवान में उनका स्थान है। नमस्कार हो ज्ञानचेतनावन्त उन मोक्षमार्गी मुनि-भगवन्तों को।
णमो लोए त्रिकालवर्ती सव्व साहूणं।
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वाह रे वाह सन्तों का पन्थ! +वाह रे वाह मोक्षमार्गी सन्त ! कितनी आपकी महिमा करूँ! आपकी चेतना की अगम अपार महिमा तो स्वानुभूतिगम्य है... ऐसी स्वानुभूति द्वारा आपकी सत्य महिमा करता हूँ। विकल्प द्वारा तो आपकी महिमा का माप कहाँ हो सकता है?
+ स्वानुभूति की निर्मलपर्यायरूप मार्ग द्वारा, हे जीव! तू तेरे चैतन्य के आनन्द-सरोबर में प्रवेश कर। तेरे उपयोग को तेरे अन्तर में ले जा-कि तुरन्त ही तुझे आनन्द की अनुभूति होगी। यह अनुभूति का पन्थ जगत से न्यारा है।
+ मैं कौन हूँ ? 'मैं' अर्थात् ज्ञान और आनन्द; मैं अर्थात् राग या शरीर नहीं-ऐसी अन्तरपरिणति द्वारा आत्मा प्राप्त होता है।
• मुझे मेरे आत्मा के ज्ञानस्वभाव के साथ काम है, दूसरे किसी के साथ मुझे काम नहीं। मेरे स्वभाव में गहरा उतरकर उसे-एक को ही-सदा भाता हूँ, उसका ही बारम्बार परिचय करता हूँ।
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