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________________ www.vitragvani.com 48] [सम्यग्दर्शन : भाग-5 है, वही मोक्ष का सच्चा कारण है, उसे अज्ञानी नहीं पहिचानता; इसीलिए वास्तव में वह मुनि को नहीं पहिचानता। मुनि का वास्तविक स्वरूप पहिचाने, तब तो मोक्षमार्ग की पहिचान हो जाये और स्वयं को भी ज्ञानचेतनारूप मोक्षमार्ग प्रगट हो। __ऐसी ज्ञानचेतना, धर्म है; शुभराग, धर्म नहीं परन्तु कर्म है। धर्म तो उसे कहा जाता है, जिसके फल में आत्मा का सुख प्राप्त हो। शुभराग के फल में तो पुण्यकर्म बँधता है और उससे संसार के भोग मिलते हैं, उस ओर के झुकाव में तो दुःख है, संसार है। भाई! तुझे भगवान होना हो तो मोक्ष के कारणरूप ज्ञानचेतना का अनुभव कर। प्रश्न : ऐसा अनुभव और सम्यग्दर्शन करनेयोग्य है, यह बात सत्य है परन्तु वह न हो, तब तक क्या करना? उत्तर : तब तक उसके लक्ष्य से उसी का उद्यम करना; अन्तर में बारम्बार उसका विचार करके निर्णय करना। सच्चा निर्णय करे तो अनुभव हुए बिना नहीं रहता। राग हो, वह अलग बात है परन्तु सर्व रागरहित ज्ञानस्वभाव ही मैं हूँ-ऐसा लक्ष्य में लेना चाहिए। ऐसे स्वभाव को लक्ष्य में लेकर उसका अभ्यास करने से, उसका रस बढ़ने पर, उपयोग उसमें ढलता है और विकल्प से पार अतीन्द्रिय आनन्द के स्वादसहित सम्यग्दर्शन होता है। ऐसे सम्यग्दर्शन के पश्चात् मुनिपना हो, वह तो बहुत निर्मोह वीतरागदशा है। चाहे जैसी सर्दी में भी शरीर पर वस्त्र ढंकने की वृत्ति ही जिन्हें उत्पन्न नहीं होती, अन्तर चैतन्य के शान्तरस में स्थिर होकर बिम्ब हो गये हैं-ऐसे वीतराग दिगम्बर मुनिवर, Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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