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________________ सम्यग्दर्शन : भाग-5] www.vitragvani.com नमस्कार हो... ज्ञानचेतनावन्त मुनिभगवन्तों को — आत्मा स्वतन्त्र, देह से भिन्न, चैतन्यवस्तु है; वह जाननेवाला है। जाननेवाले ने स्वयं अपने को नहीं जाना, यह अज्ञान है और यह संसार है । जाननेवाला स्वभाव, वह ज्ञानचेतनामय है । राग-द्वेष को जानने में ज्ञान को एकाग्र किया, वह अज्ञानी की कर्मचेतना है; और हर्ष-शोकरूप कर्मफल के वेदन में ज्ञान को एकाग्र किया, वह अज्ञानी की कर्मफलचेतना है परन्तु उस रागादि से भिन्न ऐसी ज्ञानचेतना को तो वह अज्ञानी पहचानता ही नहीं है । [ 45 जाननेवाले ने स्वयं को नहीं जाना, वह अज्ञानचेतना है; स्वयं को भूलकर दूसरे को जाना और जिसे जाना, उसे अपना मान लिया -ऐसी अज्ञानचेतनापूर्वक जो कुछ व्रत, तप, शास्त्रज्ञान, देव- पूजा इत्यादि शुभभाव करे, वह सब संसार - हेतु ही है; वह मोक्ष का हेतु नहीं होता। ज्ञानी को भी कहीं राग, वह मोक्ष का कारण नहीं है, उसे राग से भिन्न जो ज्ञानचेतना है, वही मोक्ष का कारण है । ऐसा ज्ञान तो बहुत थोड़े जीवों को होता है ! - सही बात है, परन्तु थोड़े जीवों में एक स्वयं भी मिल जाना। प्रश्न : आप कहते हो, वह बात सत्य है, परन्तु आप मुनियों को नहीं मानते - ऐसा लोग कहते हैं । उत्तर : अरे भाई! प्रतिदिन सबेरे उठते ही सर्व मुनिवरों को नमस्कार करते हैं। ‘णमो लोए सव्व साहूणं' कहकर त्रिकालवर्ती Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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