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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
यह तो एक दृष्टान्त है। इसी प्रकार सिंह जैसा, अर्थात् सिद्ध भगवान जैसा जीव अपने सच्चे रूप को भूलकर अपने को बकरी के बच्चे जैसा दीन-हीन-रागी-पामर मान रहा है। धर्म केशरी सर्वज्ञ परमात्मा स्वयं सर्वज्ञ होकर दिव्यवाणीरूपी सिंहनाद से उसे उसका परमात्मपना बतलाते हैं। अरे जीव! जैसे हम परमात्मा हैं, वैसा ही तू परमात्मा है। दोनों की एक ही जाति है। भ्रम से तूने अपने को पामर माना है और तेरे परमात्मपने को तू भूल गया है परन्तु हमारे साथ तेरी मुद्रा (लक्षण) मिलाकर देख तो सही! तो तुझे विश्वास होगा कि तू भी हमारे जैसा ही है। स्वसंवेदन द्वारा तेरे स्वच्छ ज्ञानसरोवर में देख तो तुझे तेरी प्रभुता तुझमें स्पष्ट दिखायी देगी। स्वसन्मुख वीर्य उल्लसित करके श्रद्धारूपी सिंहनाद कर तो तुझे विश्वास होगा कि 'मैं भी सिद्ध परमात्मा जैसा हूँ, मुझमें भी सिद्ध जैसा पराक्रम भरा है!' प्रभुता से भरपूर तेरा आत्मा अपने उत्पाद-व्यय-ध्रुव में अनन्त स्वभावों सहित परिणमित हो रहा है। ऐसे चैतन्यतत्त्व का भान करते ही निज वीर्य से आत्मा जाग उठता है और अपने चिदानन्दस्वभाव के सन्मुख होकर चार गति का अभाव करके अपने सच्चे स्वाँगरूप सिद्धपद को प्राप्त करता है।
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