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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [43 सिंह के बच्चे की बात (आत्मा का सच्चा स्वांग) सिंह का एक छोटा बच्चा था। वह भूल से बकरियों के झुण्ड में मिल गया और अपना सिंहपना भूलकर स्वयं को बकरी ही मानने लगा। एक बार दूसरे सिंह ने उसे देखा और उसे उसके सिंहपने का भान कराने के लिये, सिंहनाद किया। सिंह की गर्जना सुनते ही सभी बकरियाँ तो भागने लगीं परन्तु यह सिंह का बच्चा तो निर्भयरूप से खड़ा रहा। सिंह की आवाज का उसे डर नहीं लगा। तब दूसरे सिंह ने उसके समीप आकर प्रेम से कहा – अरे बच्चा! तू बकरी नहीं है, तू तो सिंह है। देख, मेरी दहाड़ सुनकर सब बकरियाँ तो भयभीत होकर भागने लगीं और तुझे डर क्यों नहीं लगा? क्योंकि तू तो सिंह है... मेरी ही जाति का है। इसलिए बकरियों का संग छोड़कर तेरे सिंह-पराक्रम को सम्हाल। और विशेष विश्वास करने के लिये तू मेरे साथ चल और इस स्वच्छ पानी में अपना मुँह देखकर विचार कर कि तेरा मुँह किसके समान लगता है, मेरे जैसा (अर्थात् सिंह जैसा) लगता है या बकरी जैसा? अभी विशेष लक्षण बतलाते हुए सिंह ने कहा था कि तू एक आवाज कर... और देख कि तेरी आवाज मेरे जैसी है या बकरी जैसी? सिंह के बच्चे ने दहाड़ लगाई, तब उसे विश्वास हो गया कि मैं सिंह हूँ; पानी के स्वच्छ झरने में अपना मुँह देखकर भी उसे स्पष्ट दिखायी दिया कि मैं तो सिंह हूँ, भ्रम से ही सिंहपना भूलकर, मेरी निजशक्ति को भूलकर मैं अपने को बकरी जैसा मान रहा था। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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