SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com 34] [ सम्यग्दर्शन : भाग-5 रागादिभाव अभूतार्थ धर्म हैं और भूतार्थ के आश्रय से प्रगट हुई सम्यग्दर्शनादि पर्याय, वह भूतार्थ धर्म है । द्रव्य - गुण तो त्रिकाल भूतार्थ है और उसका अनुभव करनेवाली पर्याय भी भूतार्थ हुई। 'शुद्धनय भूतार्थ है ' - ऐसा कहा है। ऐसे शुद्धनय द्वारा आत्मा का सम्यग्दर्शन होता है, सम्यग्दर्शनरूपी महान हीरा प्राप्त होता है और उसके साथ अनन्त अतीन्द्रिय आनन्द का लाभ होता है-ऐसे लाभ का यह अवसर है, आनन्द की कमाई का मौसम है । उसे, हे जीव ! तू चूक मत... प्रमाद मत कर... अन्यत्र कहीं रुक मत... शीघ्र तेरे चैतन्य रत्नों की कमायी कर लेना । • अहा! आपने मेरा जीवन बचाया जिसे ऐसी आत्मार्थिता होती है, उसे अन्तर में आत्मा समझानेवाले के प्रति कितना प्रमोद, भक्ति, बहुमान, उल्लास और अर्पणता का भाव होता है ! वह आत्मा समझानेवाले के प्रति विनय से अर्पित हो जाता है... अहो नाथ! आपके लिए मैं क्या - क्या करूँ? इस पामर पर आपने अनन्त उपकार किया... आपके उपकार का बदला मैं किसी प्रकार चुका सकूँ - ऐसा नहीं है। जिस प्रकार किसी को फुंफकारता हुआ भयङ्कर सर्प, फन ऊँचा करके डस ले, तब जहर चढ़ने से आकुल-व्याकुल होकर वह जीव तड़पता हो, वहाँ कोई सज्जन गारूड़ी मन्त्र द्वारा उसका जहर उतार दे तो वह जीव उस सत्पुरुष के प्रति कैसा उपकार व्यक्त करेगा ? अहा! आपने मेरा जीवन बचाया, दुःख में तड़पते हुए मुझे आपने बचाया, इस प्रकार उपकार मानता है । Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy