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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
मोक्षमार्ग में जिन पदचिह्नों पर आप चले और पूर्ण सुख को प्राप्त करके हमें वह मार्ग बतलाया, उसी मार्ग में आपके पदचिह्नों पर आना वह हमारा मार्ग है। हमारी पर्याय अब अन्तर में गयी है। चिदानन्द आत्मा का ऐसा प्रेम करके उसमें अन्तर्मुख होना, वह मङ्गल है, वह मोक्षमार्ग है, उस मोक्षमार्ग में प्रवेश करने की विधि, सन्त बतलाते हैं।
अहो ! कुन्दकुन्दाचार्यदेव मद्रास की ओर पौन्नूर में रहते थे और वहाँ से विदेहक्षेत्र में सीमन्धर भगवान की सभा में आये थे; उसके 'हम' साक्षी हैं। जो शुद्धात्मा के प्रचुर आनन्द के स्वसंवेदन में लीन थे, रागरहित स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से आत्मा का अनुभव करते थे, वे विदेहक्षेत्र में जाकर भगवान से जो कलेवा लाये हैं, वह उन्होंने इस समयसार द्वारा प्रियजनों को दिया है, अर्थात् मुमुक्षु जीवों को परोसा है। इसमें जैनशासन की उत्कृष्ट बात है। सम्यग्दर्शन -ज्ञान-चारित्र कैसे हो, उसकी विधि बतलाकर आचार्यदेव ने भरतक्षेत्र के भव्यजीवों को भगवान की वाणी की प्रसादी प्रदान की है।
जिस प्रकार घर का कोई व्यक्ति बाहर गाँव जाये और वापस आवे, तब साथ में घर के बालकों के लिये और प्रियजनों के लिये भेंट लेकर आता है और अत्यन्त प्रेम से सबको प्रदान करता है; इसी प्रकार कुन्दकुन्दाचार्यदेव विदेहक्षेत्र में जाकर सीमन्धर भगवान की दिव्यध्वनि में से जो भाग लेकर आये, आत्मा के आनन्द का जो भोजन लेकर आये, वह उन्होंने समयसार द्वारा भरतक्षेत्र के भव्य जीवों को प्रदान करके महान उपकार किया है।
-ऐसे कुन्दकुन्दाचार्यदेव द्वारा रचित समयसार की यह
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