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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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भूतार्थदृष्टि से ही सच्चा आत्मा दिखता है
और अपूर्व आनन्द होता है
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हे जीव ! आत्मा के आनन्द की कमाई का यह मौसम है। सत् समागम से आत्मा की समझ करके सम्यग्दर्शन द्वारा अपने आत्मा में मोक्षमन्दिर का शिलान्यास कर । अब अन्यत्र कहीं रूक मत । शीघ्र अपने चैतन्यरत्न की कमाई कर ले |
वह
देह-देवल में विराजमान चैतन्यमूर्ति आत्मा पवित्र है, मङ्गल है। ऐसे आत्मा का लक्ष्य करके उसकी श्रद्धा - ज्ञान करने से आत्मा को अपूर्व शान्ति प्राप्त होती है। वह माङ्गलिक है। आत्मा के अतिरिक्त शरीरादि परवस्तुओं में 'यह मैं हूँ, यह मेरा है'- ऐसा अहंभाव और ममत्वभाव, वह अमङ्गल है - दुःख है । आत्मा के भान द्वारा उस ममत्व के पाप को जो गाले, और 'मङ्ग' अर्थात् सुख को लावे, वह सच्चा माङ्गलिक है ।
आनन्द के स्वभाव से भरपूर आत्मा को जहाँ अन्तर के श्रद्धा -ज्ञान में स्थापित किया, वहाँ उस धर्मी के अन्तर मन्दिर में दूसरे कोई रागादि परभाव का प्रेम नहीं रहता । जिस प्रकार सती के मन में पति के अतिरिक्त दूसरे का प्रेम नहीं होता; उसी प्रकार सत् ऐसा जो आत्मस्वभाव, उसे साधनेवाले धर्मात्मा को अपने चिदानन्दस्वभाव के अतिरिक्त दूसरे किसी परभाव का रंग नहीं होता; चैतन्यनाथ का जो रंग लगा, उसमें अब भंग नहीं पड़ता । प्रभो! स्वभाव का स्मरण और विभाव का विस्मरण करके हम आपके मार्ग में आनेवाले हैं; हम आपके कुल के हैं। हे प्रभु!
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