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________________ 20] www.vitragvani.com [ सम्यग्दर्शन : भाग-5 तीर्थंकरों के मार्ग में प्रवेश करने का द्वार आत्मा का परम स्वभाव सत् है; उस सत् को लक्ष्य में लेकर, उसका पक्ष करके, उसके अभ्यास में दक्ष होकर उसे स्वानुभव से प्रत्यक्ष करो... तो अपूर्व आनन्दसहित मोक्ष का मार्ग आत्मा में खुल जायेगा। आत्मा को सम्यग्दर्शन कैसे हो, अर्थात् तीर्थङ्करों के मार्ग में प्रवेश कैसे हो - उसकी यह बात चलती है। व्यवहार के अनेक प्रकार हैं क्योंकि उसमें सहज एक ज्ञायकभाव तिरोभूत है और कर्म के साथ मिलावटवाले अनेक भाव अनुभव में आते हैं। जबकि निश्चय का प्रकार एक ही है, उसमें सहज एक ज्ञायकभावरूप से ही आत्मा अनुभव में आता है; और ऐसे सहज एक ज्ञायकभाव को शुद्धनय द्वारा जो देखते हैं, वे सम्यग्दृष्टि हैं, वे ही सच्चे आत्मा को देखनेवाले हैं। ऐसे आत्मा को देखकर, तीर्थङ्कर भगवन्तों के मार्ग में प्रवेश किया जाता है । रागादि अशुद्धभावरूप से ही अपने को जो अनुभव करता है, उसे तीर्थङ्करों के मार्ग में प्रवेश नहीं होता, अर्थात् धर्म की शुरुआत नहीं होती । भगवन्त तीर्थङ्करों द्वारा बताये हुए मोक्षमार्ग में प्रवेश करने का द्वार शुद्धनय है। I दुनिया में बहुत से जीव तो रागादि अशुद्धभावरूप ही आत्मा को अनुभव करते हैं; शुद्धनय द्वारा भेदज्ञान करके शुद्ध आत्मा का अनुभव करनेवाले जीव तो थोड़े / विरले ही हैं । यहाँ पानी और कीचड़ के दृष्टान्त से यह बात समझाते हैं। आत्मा का सहज एक ज्ञायकभाव और मोहादि अशुद्धभाव Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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