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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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ही है। अरे! आकाश में से उतरकर सन्त उसे शुद्धात्मा का स्वरूप समझाते हैं-जैसे महावीर के जीव को सिंह के भव में, और ऋषभदेव के जीव को भोगभूमि के भव में सम्यक्त्व की तैयारी होने पर, ऊपर से गगनविहारी मुनियों ने वहाँ उतरकर उन्हें आत्मा का स्वरूप समझाया और वे जीव भी सम्यग्दर्शन को प्राप्त हुए। किस प्रकार प्राप्त हुए? यह बात इस गाथा में समझायी है। भेद का लक्ष्य छोड़कर, अनन्त धर्म से अभेद आत्मा में ज्ञान को एकाग्र करने पर, निर्विकल्प आनन्द के अनुभवसहित सम्यग्दर्शन को प्राप्त हुए, सुन्दर बोधतरंगें उल्लसित हुई। इस प्रकार तत्काल सम्यग्दर्शन होने की विधि समझाकर सन्तों ने परम अचिन्त्य उपकार किया है।
शान्ति का वेदन चिदानन्दी परमतत्त्व के अनुभव से पहले शुद्ध द्रव्य-गुणपर्याय इत्यादि के विचार में साथ में विकल्प आता है, उस विकल्प का खेद है; उसका उत्साह नहीं, उसके प्रति उत्सुकता नहीं; शुद्धस्वभाव की ओर ही उत्साह और उत्सुकता है। सीधे-सीधे परमस्वभाव में ही पहुँच जाने की भावना है, उसी के अनुभव का लक्ष्य है, परन्तु बीच में भेद-विकल्प आ जाते हैं, उनकी भावना नहीं; उस विकल्प के समय भी ज्ञान तो उनसे पृथक् होकर चैतन्य की शान्ति की ओर ही झुक रहा है। विकल्प तो अशान्ति है; जो शान्ति का वेदन आता है, वह तो स्वभाव सन्मुख जा रहे ज्ञान में से आता है, विकल्प में से नहीं।
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