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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [17 श्रीगुरु ने ज्ञायक आत्मा बतलाया और शिष्य को समझाने के लिये इतना भेद पाड़कर कहा कि ज्ञान-दर्शन-चारित्रस्वरूप आत्मा है' इतना सुनते ही वह शिष्य, दर्शन-ज्ञान-चारित्र के भेद के विकल्प में खड़ा नहीं रहा परन्तु ज्ञान को अभेद में एकाग्र करके सीधे आत्मा को पकड़ लिया कि अहो! गुरु ने ऐसा आत्मा मुझे बताया !! इस प्रकार श्रीगुरु ने निकटवर्ती शिष्य को अभेद आत्मा समझाने के लिये भेद पाड़कर समझाया और पात्र शिष्य भी तत्काल भेद का लक्ष्य छोड़कर अभेद आत्मा को समझ गया, देर नहीं लगायी; दूसरे किसी लक्ष्य में नहीं अटका परन्तु तुरन्त ही ज्ञान को अन्तर में एकाग्र करके आत्मा को समझ गया। समझने पर उसे आत्मा में क्या हुआ? कि तत्काल अत्यन्त आनन्दसहित सुन्दर बोधतरंग उछलने लगी। अहा...! ज्ञान के साथ परम आनन्द की तरंग उछली, मानो पूरा आनन्द का समुद्र उछला। अपने में ही आनन्द का समुद्र देखा। निर्विकल्प अनुभूति करके भगवानस्वरूप से स्वयं ही अपने में प्रगट हुआ। जिस प्रकार इस शिष्य ने तत्काल निर्विकल्प आनन्दसहित आत्मा का अनुभव किया, वैसे प्रत्येक जीव में ऐसा अनुभव करने की सामर्थ्य है। अन्दर ज्ञान को एकाग्र करना चाहिए। वाणी या विकल्प में कहीं भी नहीं अटकते हुए, शुद्धात्मा पर नजर लगाकर ज्ञान को उसमें एकाग्र किया, वहाँ अतीन्द्रियज्ञान तरंग प्रगट हुई और साथ में परम आनन्द का अनुभव हुआ - सम्यग्दर्शन होने का यह वर्णन है। श्रोता / शिष्य ऐसा पात्र था कि भेद की दृष्टि छोड़कर सीधा Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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