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________________ सम्यग्दर्शन : भाग-5] www.vitragvani.com [11 ★ स्वद्रव्य के ग्राहक शीघ्र हों । ★ स्वद्रव्य की रक्षकता पर ध्यान रखें (दें)। अर्थात् निश्चय का आश्रय करो... शीघ्र करो... फिर करूँगाऐसा विलम्ब मत करो परन्तु शीघ्रता से स्वद्रव्य को पहचानकर उसका आश्रय करो, उसकी रक्षा करो और उसमें व्यापक बनो परन्तु राग के रक्षक मत बनो, राग में व्यापक मत बनो । पहले कुछ दूसरा कर लें और फिर आत्मा की पहिचान करेंगे - ऐसा कहनेवाले को आत्मा की रुचि नहीं है। आत्मा की रक्षा करना उसे नहीं आता। श्रीमद् राजचन्द्रजी छोटी उम्र में भी कितना सरस कहते हैं ! देखों तो सही! वे कहते हैं कि हे जीवों ! तुम शीघ्रता से स्वद्रव्य के रक्षक बनो... तीव्र जिज्ञासा द्वारा स्वद्रव्य को जानकर उसके रक्षक बनो, उसमें व्यापक बनो, उसके धारक बनो - ज्ञान में उसकी धारणा करो; उसमें रमण करनेवाले बनो, उसके ग्राहक बनो; इस प्रकार सर्व प्रकार से स्वद्रव्य पर लक्ष्य रखकर उसकी श्रद्धा करो। इस प्रकार निश्चय का ग्रहण करने को कहा । अब दूसरे चार वाक्यों में व्यवहार का और पर का आश्रय छोड़ने को कहते हैं: ★ परद्रव्य की धारकता शीघ्र छोड़ें। ★ परद्रव्य की रमणता शीघ्र छोड़ें। ★ परद्रव्य की ग्राहकता शीघ्र छोड़ें। ★ परभाव से विरक्त हों । Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai. - विकल्प- शुभराग से आत्मा को कुछ लाभ होगा - ऐसी मान्यता छोड़ो। परद्रव्याश्रित जितने भाव हैं, वे भाव, आत्मा में धारण करनेयोग्य नहीं हैं । उनकी धारकता शीघ्रता से छोड़ने योग्य
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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