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________________ www.vitragvani.com 10] [सम्यग्दर्शन : भाग-5 पहिचानकर स्वद्रव्य के आश्रय से ही सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्ग प्रगट होता है; इसलिए हे मुमुक्षु ! तू शीघ्र स्वद्रव्य को जान। देखो! ऐसी बात श्रीमद् राजचन्द्रजी ने छोटी उम्र में (१७ वर्ष की उम्र से पहले) भी लिखी है। सात वर्ष की उम्र में तो उन्हें जातिस्मरण में पूर्वभव का ज्ञान हुआ था। अपने यहाँ राजुलबेन को भी ढाई वर्ष की उम्र में पूर्वभव में जूनागढ़ में गीता थी, उसका जातिस्मरणज्ञान हुआ है। इससे भी विशेष नवभव का ज्ञान, सोनगढ़ में चम्पाबेन को है : उनकी बात गहरी है। आत्मा की अपार ताकत है। उसे पहचानकर उसमें रमणता करने से अपूर्व आनन्द अनुभव में आता है। श्रीमद् राजचन्द्रजी ने सत्रह वर्ष की आयु से पूर्व जो १२५ बोध वचन लिखे हैं, उनमें स्वद्रव्य का आश्रय करने और परद्रव्य का आश्रय छोड़ने के दस बोल बहुत सरस है। निश्चय का आश्रय करो और व्यवहार का आश्रय छोड़ो-ऐसा जो समयसार का आशय है, वह आशय श्रीमद् राजचन्द्रजी ने निम्न दस बोलों में बतलाया है। उसमें प्रथम तो कहते हैं कि - स्वद्रव्य और अन्य द्रव्य को भिन्न-भिन्न देखो। -इस प्रकार दोनों को भिन्न जानकर क्या करना? इसके लिये दस बोल में सरस स्पष्टीकरण लिखा है : * स्वद्रव्य के रक्षक शीघ्र हों। * स्वद्रव्य के व्यापक शीघ्र हों। * स्वद्रव्य के धारक शीघ्र हों। * स्वद्रव्य के रमक शीघ्र हों। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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