________________
www.vitragvani.com
4]
[सम्यग्दर्शन : भाग-5
में या उस ओर के राग में धर्मी जीवों को कभी सख भासित नहीं होता। अरे ! अतीन्द्रिय आनन्द का स्वामी यह चैतन्यभगवान, उन इन्द्रिय-विषयों में अटक जाये-यह तो निन्द्य है। इन्द्रियों को हत् कहा, वहाँ इन्द्रियाँ तो जड़ हैं, परन्तु उस ओर का झुकाव वह हत् है-निन्द्य है और दुःखरूप है। दुःखी जीव ही बाह्य विषयों की
ओर आकुलता से दौड़ते हैं। यदि दुःखी न हों तो विषयों की ओर क्यों दौड़े ? अतीन्द्रिय चैतन्य सुख के स्वाद में लीन सन्तों को इन्द्रिय-विषयों सन्मुख झुकाव नहीं होता।
अहा! आत्मा के अतीन्द्रियसुख स्वभाव की अलौकिक बात प्रसन्नता से जिसके अन्तर में बैठी है, आचार्यदेव कहते हैं कि वह जीव अल्प काल में मोक्ष प्राप्त करेगा क्योंकि उसकी रुचि का झुकाव इन्द्रियों की ओर से तथा इन्द्रियज्ञान की ओर से पराङ्मुख होकर अतीन्द्रियज्ञान-आनन्दस्वभाव की ओर उल्लसित हुआ है। चैतन्यस्वभाव के समीप और इन्द्रियों से दूर होकर वह आत्मा, अतीन्द्रियसुख का अनुभव करेगा।
चैतन्य जीवन की ज्योत इन्द्रियों में नहीं; इन्द्रियों के संग में चैतन्य जीवन की ज्योत हीन पड़ जाती है। भाई ! तू अतीन्द्रिय वीतरागी चैतन्य ज्योत है, तुझे इन्द्रियों के साथ भाई-बन्धी कैसी? अतीन्द्रियस्वभाव के सन्मुख हुई जलहलती ज्ञान ज्योत, वही अतीन्द्रियसुख का कारण है; भगवन्त अपने आत्मा में ऐसे पूर्ण सुख को अनुभव कर रहे हैं।
मुक्त जीव सिद्ध भगवन्त, इन्द्रिय या शरीर बिना ही परम सुखरूप स्वयमेव परिणमित होते हैं; शरीररहित अतीन्द्रियसुख, वह भगवन्तों को प्रसिद्ध है। जैसे वहाँ शरीर के बिना ही सुख है,
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.