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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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९० - तीन काल और तीन लोक में जीव को श्रेय क्या है ?
सम्यक्त्व के समान कोई श्रेय नहीं है । ९१ - चैतन्य के जितने धर्म हैं, उन सबका मूल क्या है ? दंसण मूलो धम्मो ।
- सर्व धर्म का मूल सम्यग्दर्शन है
९२ - जीव को शीघ्र क्या करनेयोग्य है ?
-
व्यर्थ काल न
- हे जीव ! तू सम्यक्त्व को शीघ्र धारण कर... गँवा। सम्यक्त्व के लाभ का यह उत्तम अवसर है ९३- राग के रास्ते से मोक्ष में जाया जाता है ?
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- नहीं, राग तो संसार - मार्ग है।
९४ - मोक्ष का मार्ग क्या है ?
- सम्यक्त्वसहित स्वानुभूति और वीतरागता । ९५ - सम्यक्त्व को और शुभराग को कोई सम्बन्ध है ? - नहीं; दोनों भाव अत्यन्त भिन्न हैं ।
९६- सम्यक्त्व होने पर क्या हुआ ?
- ज्ञान की धारा राग से छूटकर मोक्ष की ओर चली । ९७- संसार में भ्रमता हुआ जीव पूर्व में क्या नहीं पाया ? - एक तो जिनवरस्वामी और दूसरा सम्यक्त्व। ९८- भगवान के पास तो जीव अनन्त बार गया है न ?
- हाँ, परन्तु उसने भगवान को पहिचाना नहीं। ९९- भगवान को पहिचाने तो क्या हो ?
- शुद्ध आत्मा की पहिचान और सम्यग्दर्शन हो ही ।
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