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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [ 97 ९० - तीन काल और तीन लोक में जीव को श्रेय क्या है ? सम्यक्त्व के समान कोई श्रेय नहीं है । ९१ - चैतन्य के जितने धर्म हैं, उन सबका मूल क्या है ? दंसण मूलो धम्मो । - सर्व धर्म का मूल सम्यग्दर्शन है ९२ - जीव को शीघ्र क्या करनेयोग्य है ? - व्यर्थ काल न - हे जीव ! तू सम्यक्त्व को शीघ्र धारण कर... गँवा। सम्यक्त्व के लाभ का यह उत्तम अवसर है ९३- राग के रास्ते से मोक्ष में जाया जाता है ? I - नहीं, राग तो संसार - मार्ग है। ९४ - मोक्ष का मार्ग क्या है ? - सम्यक्त्वसहित स्वानुभूति और वीतरागता । ९५ - सम्यक्त्व को और शुभराग को कोई सम्बन्ध है ? - नहीं; दोनों भाव अत्यन्त भिन्न हैं । ९६- सम्यक्त्व होने पर क्या हुआ ? - ज्ञान की धारा राग से छूटकर मोक्ष की ओर चली । ९७- संसार में भ्रमता हुआ जीव पूर्व में क्या नहीं पाया ? - एक तो जिनवरस्वामी और दूसरा सम्यक्त्व। ९८- भगवान के पास तो जीव अनन्त बार गया है न ? - हाँ, परन्तु उसने भगवान को पहिचाना नहीं। ९९- भगवान को पहिचाने तो क्या हो ? - शुद्ध आत्मा की पहिचान और सम्यग्दर्शन हो ही । Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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