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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
का है।
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वह कोई चमत्कार नहीं । वास्तविक चमत्कार तो चैतन्यदेव
७१- वीतरागता का साधक धर्मी किसे नमता है ?
- वीतरागी देव के अतिरिक्त किसी देव को वह नहीं नमता ।
७२- अरिहन्त के शरीर में रोग या अशुचि होती है ?
- नहीं; अरिहन्त को जैसे राग नहीं है, वैसे रोग भी नहीं है ।
७३ - साधक के शरीर में रोगादि होते हैं ?
- हाँ, परन्तु अन्दर आत्मा सम्यक्त्वादि से शोभित हो रहा है। मुनियों का शृंगार क्या ?
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- रत्नत्रय उनका श्रृंगार है ।
७५ - ऐसे मुनियों को देखने से अपने को क्या होता है ?
- अहो ! बहुमान से उनके चरणों में सिर नम्रीभूत हो जाता है,
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और मोक्षमार्ग के प्रति उल्लास जागृत होता है।
७६- धर्मी अकेला हो तो ?
- तो भी उकताता नहीं है; सत्यमार्ग में वह नि:शंक है । ७७- जैसे माता को पुत्र प्रिय है, वैसे धर्मी को क्या प्रिय है ? - धर्मी को प्रिय साधर्मी; धर्मी को प्रिय रत्नत्रय । ७८- धर्म की सच्ची प्रभावना कौन कर सकता है ? - जिसने स्वयं धर्म की आराधना की हो वह । ७९- धर्मी को चक्रवर्ती पद का भी मद क्यों नहीं है ?
· क्योंकि चैतन्य तेज के समक्ष चक्रवर्ती पद फीका लगता है
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