SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यग्दर्शन : भाग-5] का है। www.vitragvani.com [95 वह कोई चमत्कार नहीं । वास्तविक चमत्कार तो चैतन्यदेव ७१- वीतरागता का साधक धर्मी किसे नमता है ? - वीतरागी देव के अतिरिक्त किसी देव को वह नहीं नमता । ७२- अरिहन्त के शरीर में रोग या अशुचि होती है ? - नहीं; अरिहन्त को जैसे राग नहीं है, वैसे रोग भी नहीं है । ७३ - साधक के शरीर में रोगादि होते हैं ? - हाँ, परन्तु अन्दर आत्मा सम्यक्त्वादि से शोभित हो रहा है। मुनियों का शृंगार क्या ? ७४ - - रत्नत्रय उनका श्रृंगार है । ७५ - ऐसे मुनियों को देखने से अपने को क्या होता है ? - अहो ! बहुमान से उनके चरणों में सिर नम्रीभूत हो जाता है, — और मोक्षमार्ग के प्रति उल्लास जागृत होता है। ७६- धर्मी अकेला हो तो ? - तो भी उकताता नहीं है; सत्यमार्ग में वह नि:शंक है । ७७- जैसे माता को पुत्र प्रिय है, वैसे धर्मी को क्या प्रिय है ? - धर्मी को प्रिय साधर्मी; धर्मी को प्रिय रत्नत्रय । ७८- धर्म की सच्ची प्रभावना कौन कर सकता है ? - जिसने स्वयं धर्म की आराधना की हो वह । ७९- धर्मी को चक्रवर्ती पद का भी मद क्यों नहीं है ? · क्योंकि चैतन्य तेज के समक्ष चक्रवर्ती पद फीका लगता है I Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy