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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
६१- चैतन्यतत्त्व कैसा है? - अहा! उसकी अद्भुत महिमा है, उसमें अनन्त स्वभाव है। ६२- सम्यग्दर्शन किस प्रकार प्रगट होता है ? - आनन्द के अपूर्व वेदनसहित ही सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। ६३- सम्यग्दर्शन के साथ धर्मी को क्या होता है ?
- नि:शंकतादि आठ गुण होते हैं तथा चैतन्य के अनन्त गुणों का रस सम्यग्दर्शन के साथ वेदन में आता है। ६४- जिसने चैतन्यसुख नहीं चखा, उसे क्या होता है? - उसे गहराई में राग की-पुण्य की-भोग की आकांक्षा होती है। ६५- सम्यग्दृष्टि जीव कहाँ वर्तता है ? - चेतना में ही तन्मय वर्तता है, राग में नहीं वर्तता। ६६- धर्म से क्या मिलता है ? - धर्म से आत्मा का वीतरागी सुख मिलता है। ६७- पुण्यरूपी धर्म कैसा है ? - वह संसार-भोग का हेतु है; वह मोक्ष का हेतु नहीं। ६८- उस पुण्य को कौन चाहता है ? - अज्ञानी। ६९- धर्मी किसे चाहता है ?
-वह अपने चैतन्य-चिन्तामणि के अतिरिक्त किसी को नहीं चाहता।
७०- स्वर्ग का देव आवे तो?
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