SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [91 - नहीं। ३३- शरीर का छेदन-भेदन हो, तब जीव शान्ति रख सकता है? - हाँ, जीव को शरीर से भिन्न जाने-अनुभव करे तो जीव शान्ति रख सकता है। ३४- जीव की भूल कैसे छूटे? - अपनी भूल को तथा अपने गुण को-(स्वभाव को) जाने तब। ३५- आत्मा का स्वभाव दु:ख का कारण होगा? - नहीं, आत्मा का स्वभाव सुख का ही कारण है। ३६- राग या पुण्य कभी सुख का कारण होगा? - नहीं, राग और पुण्य तो सदा ही दुःख का ही कारण है। ३७- ऐसा जाननेवाला जीव क्या करता है ? - पुण्य-पाप से भिन्न पड़कर आत्मा की ओर ढलता है। ३८- पुण्य से भविष्य में सुख मिलेगा-यह सत्य है ? - नहीं; अनुकूल संयोग मिलें, वे कहीं सच्चा सुख नहीं है। ३९- अज्ञानी किसका आदर करते हैं? - पुण्य का (तथा पुण्य के फल का) ४०- ज्ञानी किसका आदर करते हैं ? - पुण्य-पापरहित ज्ञानचेतना का। ४१- आत्मा को एक ओर रखकर धर्म हो सकता है ? - कभी नहीं होता; आत्मा को पहिचानकर ही धर्म होता है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy