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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [89 १६- राग के समय अन्तरात्मा की चेतना कैसी है? - तब भी उसकी चेतना, राग से अलिप्त ही है। १७- अज्ञानी को व्यवहाररत्नत्रय होता है ? - नहीं, अज्ञानी को तो मात्र व्यवहाराभास ही है; इसलिए जघन्य अन्तरात्मा से भी वह हल्का है; उसका स्थान तो संसारतत्त्व में ही है। १८- सम्यग्दृष्टि की परिणति कैसी है ? - कोई अद्भुत आश्चर्यकारी है; ज्ञान-वैराग्य सम्पन्न है। १९- अविरत सम्यग्दृष्टि को कितनी कर्म प्रकृति नहीं बँधती है? - उसे कुल ४३ कर्मप्रकृति बँधती ही नहीं। (४१+२) २०- छोटे से छोटे सम्यग्दृष्टि की आत्मश्रद्धा कैसी है? - सिद्ध भगवान जैसी। २१- कुन्दकुन्ददेव ने मोक्षप्राभृत में सम्यग्दृष्टि को कैसा कहा है? - वह धन्य, कृतकृत्य है, शूरवीर है, पण्डित है। २२- सर्वज्ञ का वास्तविक स्वीकार कौन कर सकता है ? - ज्ञानदृष्टिवन्त सम्यग्दृष्टि ही सर्वज्ञ का वास्तविक स्वीकार करता है। २३- सर्वज्ञ के स्वीकार में क्या-क्या आता है ? - अहा! सर्वज्ञ के स्वीकार में तो ज्ञानस्वभाव का स्वीकार है; Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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