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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
- हाँ; अन्तरात्मा होकर पहिचान सकते हैं। ८- अन्तरात्मा का लक्षण क्या?
- स्व-पर के भेदज्ञानपूर्वक ज्ञानचेतना की अनुभूति, वह उसका लक्षण है।
९- ज्ञानचेतनावन्त अन्तरात्मा को वास्तव में कौन पहिचान सकता है?
- अन्तरात्मा होने का सच्चा जिज्ञासु हो वह; तथा जो स्वयं अन्तरात्मा हो वह।
१०- अकेले अनुमान द्वारा ज्ञानी को पहिचाना जा सकता है?
- नहीं, वास्तव में तो स्वसंवेदन-प्रत्यक्षपूर्वक ही पहिचाना जा सकता है।
११- आत्मा को अनुभव करनेवाले अन्तरात्मा कैसे हैं ? - वे परमात्मा के पड़ोसी हैं, अर्थात् वे परमात्मपद के पथिक हैं। १२- राग होने पर भी अन्तरात्मा क्या करता है? - अपनी ज्ञानचेतना को राग से भिन्न अनुभव करता है। १३- अन्तरात्मा की पहिचान करने से क्या होता है ? - जीव-अजीव का सच्चा भेदज्ञान हो जाता है। १४- सम्यग्दृष्टि को अशुभभाव हो तब? - तब भी वह अन्तरात्मा है। १५- मिथ्यादृष्टि, शुभभाव करता हो तब? - तब भी वह बहिरात्मा है।
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