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________________ www.vitragvani.com 88] [सम्यग्दर्शन : भाग-5 - हाँ; अन्तरात्मा होकर पहिचान सकते हैं। ८- अन्तरात्मा का लक्षण क्या? - स्व-पर के भेदज्ञानपूर्वक ज्ञानचेतना की अनुभूति, वह उसका लक्षण है। ९- ज्ञानचेतनावन्त अन्तरात्मा को वास्तव में कौन पहिचान सकता है? - अन्तरात्मा होने का सच्चा जिज्ञासु हो वह; तथा जो स्वयं अन्तरात्मा हो वह। १०- अकेले अनुमान द्वारा ज्ञानी को पहिचाना जा सकता है? - नहीं, वास्तव में तो स्वसंवेदन-प्रत्यक्षपूर्वक ही पहिचाना जा सकता है। ११- आत्मा को अनुभव करनेवाले अन्तरात्मा कैसे हैं ? - वे परमात्मा के पड़ोसी हैं, अर्थात् वे परमात्मपद के पथिक हैं। १२- राग होने पर भी अन्तरात्मा क्या करता है? - अपनी ज्ञानचेतना को राग से भिन्न अनुभव करता है। १३- अन्तरात्मा की पहिचान करने से क्या होता है ? - जीव-अजीव का सच्चा भेदज्ञान हो जाता है। १४- सम्यग्दृष्टि को अशुभभाव हो तब? - तब भी वह अन्तरात्मा है। १५- मिथ्यादृष्टि, शुभभाव करता हो तब? - तब भी वह बहिरात्मा है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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