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________________ www.vitragvani.com 86] [सम्यग्दर्शन : भाग-5 सम्यग्दृष्टि की पहिचान का भाव भी अपूर्व है। जैसे आत्मा अलिंगग्रहण, अर्थात् अतीन्द्रियग्राह्य है; वैसे उसकी सम्यक्त्व आदि शुद्धदशा भी वास्तव में अलिंगग्रहण अर्थात् अतीन्द्रियग्राह्य है; उसे अकेले इन्द्रियगम्य अनुमान से नहीं पहिचाना जा सकता। * तैयारी और प्राप्ति * प्रश्न : सम्यग्दर्शन प्राप्त करने की तैयारीवाले जीव की दशा कैसी होती है ? और सम्यग्दर्शन प्राप्त करने के बाद उसकी दशा कैसी होती है? उत्तर : एक आत्मानुभव की ही उमंग, उसी का रंग, बारम्बार सतत् उसी का घोलन, निजस्वरूप की अतिशय महत्ता, उसकी -एक की ही प्रियता और उसके अतिरिक्त समस्त परभावों की अत्यन्त तुच्छता समझकर उनमें अत्यन्त नीरसता, अन्य सबसे परिणाम हटाकर एक आत्मस्वरूप में ही परिणाम को लगाने का गहरा उग्र प्रयत्न... स्वरूप की अप्राप्ति का प्रथम तीव्र अकुलाहट, उसकी प्राप्ति के लिये तीव्र जिज्ञासारूप धगश, फिर निकट में ही स्वरूप की प्राप्ति के भनकार का परम उल्लास-इस प्रकार बहुत प्रकार से अनेक बार (गुरुदेव) सम्यक्त्व की भूमिका वर्णन करते हैं। स्वरूप प्राप्त हुआ, वह अपूर्वता हुई, वह तो अपार गम्भीररूप से अन्दर ही अन्दर समाहित होता है। उस समकिती की परिणति में कोई परम उदासीनता, अद्भुत शान्ति, जगत से अलिप्तता, आत्मा के अनुभव के आनन्द की कोई अचिन्त्य खुमारी-इत्यादि अनन्त भावों से बहुत-बहुत गम्भीरता तो स्वयं को जब स्वानुभव हो तब पता पड़े। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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