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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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भगवान जैसी अवस्था कब होगी? पहले अरिहन्त भगवान जैसा अपने आत्मा का शुद्धस्वरूप निर्णीत करे, तब सम्यग्दर्शन-ज्ञान प्रगट होते हैं, अर्थात् अरिहन्त भगवान जैसा अंश प्रगट होता है और पश्चात् उस शुद्धस्वरूप में लीन होने पर, सर्व मोह का नाश होकर साक्षात् अरिहन्त भगवान जैसी दशा हो जाती है। ___ अरिहन्त भगवान जैसा ही मेरा स्वरूप है—ऐसा पहिचानने पर स्वरूप में भी निःशंकता हो जाती है; यदि अपने स्वभाव की निःशंकता न हो तो अरिहन्त के स्वरूप का भी यथार्थ निर्णय नहीं है। जिसने अरिहन्त का और अरिहन्त जैसे अपने स्वरूप का निर्णय किया, उसने मोहक्षय का उपाय प्राप्त कर लिया है। सम्यक्त्वचिन्तामणि रत्न प्राप्त कर लिया है।
॥ अहो! जिसे अरिहन्त भगवान जैसे पूर्ण स्वरूपी आत्मा का साक्षात् अनुभव है तो फिर उसके पास क्या नहीं है? भले पंचम काल हो और साक्षात् अरिहन्त भगवान का विरह हो, परन्तु जिसने अन्तर में अरिहन्त भगवान जैसे अपने स्वभाव का अनुभव किया है, उसने समस्त मोह की सेना को जीतने का उपाय प्राप्त कर लिया है। इस प्रकार धर्मी को निःशंकता होती है कि मेरा स्वभाव, मोह का नाशक है।
IS अरिहन्त भगवान सर्वथा मोहरहित हो गये हैं और उन अरिहन्त भगवान जैसा आत्मा का स्वभाव है, ऐसी जिसने प्रतीति की है, उसे भी अल्प काल में ही समस्त मोह का नाश हो जाता है। धर्मी जानता है कि अरिहन्त भगवान जैसा मेरा स्वभाव है; वह
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