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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-4] [39 ___ हे जीव! तुझे तेरा अच्छा करना है न?...तो इस जगत में तू यह ढूँढ निकाल कि जगत् में सबसे अच्छा किसने किया है ? पूर्ण हित किसने प्रगट किया है ?... ___अरिहन्त भगवन्त इस जगत् में सम्पूर्ण सुखी हैं, उन्होंने आत्मा का सम्पूर्ण हित किया है। अरिहन्त भगवान ने किस प्रकार आत्मा का हित किया?.... पहले अपने आत्मस्वभाव को परिपूर्ण जानकर, उस स्वभाव के आश्रय द्वारा मोह का क्षय किया-इस प्रकार अरिहन्त भगवन्तों ने आत्मा का हित किया। अरिहन्त जैसे अपने आत्मस्वभाव को जाना और फिर उसमें लीन होकर मोह का क्षय करके वीतरागता और केवलज्ञान प्रगट किया; इसलिए वे अरिहन्त भगवन्त सुखी हैं। Is उनके आत्मा की वह केवलज्ञान दशा कहाँ से आयी? त्रिकाली द्रव्य-गुण का जो स्वभावसामर्थ्य है, उसमें से ही वह दशा प्रगट हुई है। हे जीव! तेरे द्रव्य-गुण में भी अरिहन्त भगवान जैसा ही स्वभावसामर्थ्य है, उस स्वभाव की श्रद्धा-ज्ञान करके, तू उसमें स्थिरता कर तो तुझे तेरे द्रव्य-गुण में से केवलज्ञान और पूर्ण सुखमय दशा प्रगट होगी, यह आत्मा का हित करने का उपाय है। दुनिया में अपना अच्छे में अच्छा करनेवाले तो भगवान अरिहन्त हैं, उन्हें ही तू तेरे आदर्शरूप में रख। IT अहो! जिन्हें मोह नहीं, अवतार नहीं, मरण नहीं, विकल्प नहीं, पर की उपाधि नहीं, भूख-प्यास नहीं, शोक नहीं, जिन्हें दिव्य केवलज्ञान और सम्पूर्ण अतीन्द्रिय सुख प्रगट हो गया है तथा जो कृतकृत्य हैं-ऐसे अरिहन्त भगवान ___Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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