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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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उसमें से ही प्रगट हुई है; तेरे आत्मा में भी हमारे जैसी ही परिपूर्ण शक्ति है । हे जीव! तेरे आत्मा की शक्ति को पहचान तो तेरा मोह नाश हुए बिना नहीं रहेगा।'
IS जैसे मोर के अण्डे में साढ़े तीन हाथ का रङ्ग-बिरङ्गा मोर होने का स्वभाव पड़ा है, इसलिए उसमें से मोर होता है; इसी प्रकार आत्मा में आनन्दमय केवलज्ञान कला प्रगट होने की शक्ति है, उसमें से केवलज्ञान खिलता है-जो ऐसी अन्तरशक्ति की प्रतीति करे, उसे सम्यग्दर्शन होकर अल्प काल में केवलज्ञान कला खिल जाती है।
-परन्तुIT इस छोटे अण्डे में बड़ा रङ्ग-बिरङ्गी मोर कैसे होगा? - ऐसी शङ्का करके यदि अण्डे को झंझोड़े तो उसका रस सूख जाता है और मोर नहीं होता; इसी प्रकार जो जीव, आत्मा के स्वभाव -सामर्थ्य का विश्वास करे नहीं और अभी आत्मा भगवान जैसा कैसे होगा?'-ऐसे स्वभाव में शङ्का करे तो उसे सम्यग्दर्शन नहीं होता और मोह नहीं टलता। ___ मोर के छोटे-से अण्डे में मोर होने का स्वभाव है, वह स्पर्श-रस इत्यादि इन्द्रियों से नहीं दिखता परन्तु ज्ञान द्वारा ही ख्याल में आता है। इसी प्रकार आत्मा में केवलज्ञान होने का जो स्वभाव है, वह इन्द्रियों द्वारा, मन द्वारा या राग द्वारा भी ज्ञात नहीं होता परन्तु उन इन्द्रिय इत्यादि का अवलम्बन छोड़कर स्वभाव-सन्मुख झुके हुए अतीन्द्रियज्ञान से ही वह ज्ञात होता है। IS जैसे दियासलाई के टोंप में अग्नि होने की सामर्थ्य है,
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