________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-4] [191 अपार महिमा समझायी। मथुरा नगरी के हजारों जीव भी ऐसी महान प्रभावना देखकर आनन्दित हुए और बहुमानपूर्वक जैनधर्म की उपासना करने लगे। इस प्रकार वज्रकुमार मुनि और उर्विलारानी द्वारा जैनधर्म की महान प्रभावना हुयी। [वज्रकुमार मुनि की कथा हमें जैनधर्म की सेवा करना और अत्यन्त महिमापूर्वक उसकी प्रभावना करना सिखाती है। तनमन-धन से, ज्ञान से, श्रद्धा से, सर्वप्रकार से, धर्म के ऊपर आया संकट दूर करके धर्म की महिमा और उसकी वृद्धि करना चाहिए। वर्तमान में तो मुख्यतः ज्ञान-साहित्य द्वारा धर्म-प्रभावना करना योग्य है।] . प्रभु! हर्ष और उत्साह तो... जिस प्रकार शराबी मनुष्य को श्रीखण्ड का स्वाद, गाय के दूध जैसा लगता है; उसी प्रकार जिसने भ्रान्तिरूप शराब पी है - ऐसे अज्ञानियों को विषयों और राग में सुख लगता है; अन्दर भगवान आत्मा में विषयातीत अतीन्द्रिय सुख भरा है, वहाँ वह नजर नहीं करता। भाई! तूने गुरु के उपदेश की अस्वीकृति की है, मरकर तू कहाँ जाएगा? अरे रे! चींटी, कौआ और कुत्ते का यह अवतार! अहो ! यह तो एक बार संसार का हर्ष और उत्साह टूट जाए - ऐसी बात है। प्रभु! हर्ष और उत्साह तो अन्दर आनन्दस्वभावी निज आत्मा में करने जैसा है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.