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________________ www.vitragvani.com 160] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 SAGAR దండ ३. निर्विचिकित्सा-अङ्ग में प्रसिद्ध उदायन राजा की कथा सौधर्म-स्वर्ग में देवों की सभा लगी हुई है; इन्द्र महाराज देवों को सम्यग्दर्शन की महिमा समझा रहे हैं । हे देवों! सम्यग्दर्शन में तो आत्मा का कोई अद्भुत सुख है। जिस सुख के समक्ष इस स्वर्ग-सुख की कोई गिनती नहीं है। इस स्वर्गलोक में मुनिदशा नहीं हो सकती, परन्तु सम्यग्दर्शन की आराधना तो यहाँ भी हो सकती है। __मनुष्य तो सम्यक्त्व की आराधना के अतिरिक्त चारित्रदशा भी प्रगट करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। जो जीव, निःशङ्कता, नि:काँक्षा, निर्विचिकित्सा आदि आठ अङ्गों सहित शुद्ध सम्यग्दर्शन के धारक हैं, वे धन्य हैं। ऐसे सम्यग्दृष्टि जीवों की यहाँ स्वर्ग में भी हम प्रशंसा करते हैं। ___ वर्तमान में कच्छ देश में उदायन राजा ऐसे सम्यक्त्व से शोभायमान हैं तथा सम्यक्त्व के आठों अङ्ग का पालन कर रहे हैं। जिसमें निर्विचिकित्सा-अङ्ग के पालन में वे बहुत दृढ़ हैं। मुनिवरों की सेवा में वे इतने तत्पर हैं कि चाहे जैसा रोग हो तो भी वे रञ्चमात्र जुगुप्सा नहीं करते तथा ग्लानिरहित परमभक्ति से धर्मात्माओं की सेवा करते हैं। उन्हें धन्य हैं ! वे चरमशरीरी हैं। राजा के गुणों की ऐसी प्रशंसा सुनकर वास्रव नाम के एक देव को यह सब प्रत्यक्ष देखने की इच्छा हुयी और वह स्वर्ग से उतरकर मनुष्यलोक में आया। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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