SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com 158] [ सम्यग्दर्शन : भाग-4 सुन्दर रंगोली ( चौक) देखकर प्रियदत्त सेठ की आँखों में से आँसुओं की धार वह निकली; अपनी प्रिय पुत्री की याद करके उन्होंने कहा कि मेरी पुत्री अनन्तमती भी ऐसी ही रंगोली पूरती थी; अत: जिसने यह रंगोली पूरी हो, उसके पास मुझे ले जाओ। वह रंगोली पूरनेवाला कोई दूसरा नहीं था, अपितु अनन्तमती स्वयं ही थी; अपने मामा के यहाँ जब वह भोजन करने आयी थी, तभी उसने रंगोली पूरी थी, फिर बाद में वह आर्यिका संघ में चली गयी थी । तुरन्त ही सभी लोग संघ में पहुँचे। अपनी पुत्री को देखकर और उस पर बीती हुई कथा सुनकर सेठ गद्गद हो गये, और कहा 'बेटी ! तूने बहुत कष्ट भोगे, अब हमारे साथ घर चल, तेरे विवाह की तैयारी करेंगे।' विवाह का नाम सुनते ही अनन्तमती चौंक उठी और बोलीपिताजी ! आप यह क्या कहते हैं ? मैंने तो ब्रह्मचर्यव्रत लिया है और आप भी यह बात जानते हैं । आपने ही मुझे यह व्रत दिलाया था । पिताजी ने कहा- बेटी, यह तो तेरे बचपन की हँसी की बात थी। फिर भी यदि तुम उस प्रतिज्ञा को सत्य ही मानती हो तो भी वह तो मात्र आठ दिन की प्रतिज्ञा थी; इसलिए अब तुम विवाह करो । अनन्तमती दृढ़ता से कहा - पिताजी आप भले ही आठ दिन की प्रतिज्ञा समझे हों, परन्तु मैंने तो मन से आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा धारण की थी । मैं अपनी प्रतिज्ञा प्राणान्त होने पर भी नहीं छोडूंगी। अतः आप विवाह का नाम न लेवें। अन्त मे पिताजी ने कहा-अच्छा बेटी, जैसी तेरी इच्छा, परन्तु अभी तू मेरे साथ घर चल और वही धर्मध्यान करना । Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy