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(xv)
अनुक्रमणिका
लेख सिद्धप्रभुजी ! आओ दिल में..... सम्यक्त्व का पहला पाठ...... धर्म की कमाई का अवसर. ......... आचार्यदेव अप्रतिबुद्ध जीव को आत्मा............. आत्मकल्याण की अद्भुत प्रेरणा................ हे जीव! तेरे आत्महित के लिये तू शीघ्रता..... सम्यग्दर्शन के लिये अरिहन्तदेव को पहिचानो... गुण प्रमोद अतिशय रहे रहे अन्तर्मुख योग... अनुभव का.... उपदेश.. अरिहन्त भगवान को पहचानो (2)........ राम को प्रिय चन्द्रमा.. ......साधक को प्रिय सिद्ध.... हे जीव! तू स्वद्रव्य को जान... सन्त बतलाते हैं..... रत्नों की खान... वैराग्य सम्बोधन..................... चेत... चेत... जीव चेत!................ सम्यक्त्व के लिये आनन्ददायी बात....... हे जीव! प्रज्ञा द्वारा मोक्षपंथ में आ!.. स्वानुभव के चिह्नरूप ज्ञानचेतना ज्ञानी.. धर्मात्मा की ज्ञानचेतना. वास्तविक ज्ञायक वीर... समयसार के श्रोता को.... आशीर्वाद............ तीन रत्नों की कीमत समझिये..
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
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