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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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है। निःशङ्कता, नि:कांक्षा, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपगूहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना - इन आठ अङ्गरूपी किरणों से जगमगाता जो सम्यक्त्वरूपी सूर्य उदित हुआ, उसके प्रताप द्वारा सम्यग्दृष्टि समस्त कर्मों को भस्म करके अल्प काल में ही सिद्धपद को पाता है। समकिती के इन आठ अङ्गों का आठ गाथाओं द्वारा आचार्यदेव अद्भुत वर्णन करते हैं।
सम्यग्दृष्टि बहिन शुद्धोपयोग, वह मोक्षार्थी जीव का भाई है क्योंकि वह शुद्धोपयोग मोक्ष में जाने के लिये भाई के समान सहायक है, साथ में रहनेवाला है; और निर्मल सम्यग्दृष्टिरूपी परिणति, वह भद्रस्वभाववाली बहिन है-जो कि मोक्षार्थी आत्मा पर उपकार करती है। - सम्यग्दृष्टिरूप परिणति, वह साधक आत्मा की मुख्य और स्पष्ट उपकार करनेवाली बहिन है। यह निर्मल आत्मदृष्टिरूपी भगिनी सर्व भव का नाश करके आत्मबन्धु को आनन्द देनेवाली है।
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